यूँ ही..............
मुझको यदि पढ़ना चाहोगे
कई बहाने मिल जाएँगे
मुझसे यदि बचना चाहोगे
कई बहाने मिल जाएँगे
हम दुनियावी मसलों को-
छोड़, यहाँ तक आ पहुंचे हैं
तुम, अपनी फिकरों को छोड़ो
कई बहाने मिल जाएँगे
खूब दिखाए बाग-तितलियाँ
औ खूब सुनाई गज़लें भी
कैसे डूब गई मैं तुझमें
कई बहाने मिल जाएँगे
कौन कह रहा तनहा हैं हम
हम से दूर हुए कब तुम थे?
मजबूरी टूटे बस…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 20, 2017 at 11:43am — No Comments
यूँ ही..............
अवसादों की खींच-तान हो,
तुमको मैंने देखा है
बादल तिरता आस्मान हो
तुमको मैंने देखा है
हर कारज के होने में
पाने में या खोने में
तुम ही सब अनुष्ठान हो
तुमको मैंने देखा है
आपा-धापी, गला-काट
बात-बात पर लाग-डांट
दुनिया से परेशान हो
तुमको मैंने देखा है
जगती के इस रेले में
औ विवाद के ठेले में
जलता सा जब मसान हो
तुमको मैंने देखा…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 20, 2017 at 11:27am — No Comments
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