कैसे दिल को सम्हालूं मैं बाज़ार में,
उनसे खुद का दुपट्टा सम्हलता नहीं,
राख करती मुझे मेरे दिल की तपिश,
उनका दिल भी कभी क्यों पिघलता नहीं ,
आज की शाम ऐसे कभी भी न थी,
पहले बदनाम ऐसे कभी भी न थी,
ख्वाब हम ने हजारों हैं पाले मगर,
उनके दिल में कोई ख्वाब पलता नहीं,
कैसे दिल को....
दिल में गहरा समन्दर भी है प्यार…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on August 7, 2024 at 1:13pm — No Comments
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