जीवन की आपाधापी में,
दिन बचपन के भूल गये,
परिवर्तित हो गयी हवायें,
मौसम भी प्रतिकूल भये।
वो शाम सुहानी,मित्रों के दल,
और किनारा नदियों का,
कूद, कबड्डी,गुल्ली डंडा,
झर झर झरना सदियों का,
खेत और खलिहान की रंगत,
लदी डाल में अमियों का,
मानचित्र बनता है मन में,
धूल-धूसरित गलियों का,
भौतिकता के मैराथन में,
हम इतने मशगूल भये। जीवन---
बाबू जी की उंगली थामे,
ढलती शाम की बेला में,
चल पड़ते थे खुशी-खुशी हम,
अपने गाँव के मेला में,
पानी-पूरी,चाट,मुगौरी,
और खसता के चटकारे,
बाँसुरी,पिपिहरी,शीटी भी,
और हवा के गुब्बारे,
मेघनाद,रावण के पुतले,
लगते थे कितने प्यारे ,
जीत राम की होती थी,
और हर्षित होते थे सारे,
वो कल बदला,वो पल बदला,
अब सब विचार निर्मूल भये।जीवन----
खुले गगन में दादी के संग,
गर्मी की उन रातों में,
उड़ता था मन मतवाला हो ,
मीठी-मीठी बातों में,
राजा रानी और परियों के,
किस्से अब क्यों भूल गये । जीवन----
अजय शर्मा "अज्ञात "
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अजय भाई , गाँव मे बिते बचपन की यादें ताज़ा हो गईं , बहुत सुन्दर !! आपको कविता के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरणीय अजय जी इस प्रस्तुति में यादों को बहुत बढ़िया शब्द मिले है. बहुत बहुत बधाई
गाँव की बीती बाते बीता बचपन ताउम्र याद रहता है उन खूबसूरत यादों को शब्दों का जामा पहनाकर बहुत सुन्दर कविता रची है है आपने अजय जी ,बहुत- बहुत बधाई
आप समस्त महानुभावों का हृदय से आभार।
अब सब विचार निर्मूल भये।जीवन----
खुले गगन में दादी के संग,
गर्मी की उन रातों में,
उड़ता था मन मतवाला हो ,
मीठी-मीठी बातों में,
राजा रानी और परियों के,
किस्से अब क्यों भूल गये........सच में इस वातानूकूलित जनरेशन के लिए तो गर्मियों में छत पर सोना एक दन्त कथा सा है , धन्यवाद आपका कुछ खुशनुमा यादों को फिर से जीवंत करने के लिए आदरणीय अजयजी .
बहुत ही मीठी -मीठी यादों से भरी ये रचना हुई है आदरणीय अजय शर्मा "अज्ञात "जी। यादों का सफर ऐसा ही होता है। बधाई
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