किसकी सुनता है मन की करता है,
मुँह में रखता ज़बान-ए-गोया है..
हक़ बयानी ही उसका शेवा है,
कब उसे ज़िन्दगी की परवा है..
मौत पर ये जवाब उसका है,
क्या अजब है कि इक तमाशा है..
वो जो हर ग़म में इक मसीहा है,
कौन जाने कहाँ वो रहता है..
क्यूँ ख़्यालों में है अबस मेरे
किस ने ज़ोहेब उसको देखा है..??
मौलिक एवं अप्रकाशित।
Added by Zohaib Ambar on September 11, 2018 at 10:30am — 1 Comment
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