For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – November 2016 Archive (8)

चमक धमक (कविता)

चमक धमक

चमक धमक को समझ बैठे
तरक्की की सीढियाँ
चलते रहे चका चौंध के पीछे
इंसानियत को भी गवां बैठे ।


तेज़ रौशनी में छुपे अँधेरे को
समझ न सके पैर डगमगा गए
लोटने का रास्ता भी न मिला
खुद ही खुद को गवां बैठे ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 26, 2016 at 8:40pm — 2 Comments

बचपन (कविता)

बचपन



आज के जीवन शैली में

बचपन कहीं नहीं हैं

अल्हड़पन नहीं है

मासूमियत कहीं खो गयी है ।

मोबाइलों ने छीन ली है

खुले मैदानों की चिल्लाहट

टीवी कॉम्प्यूटर चल पड़े हैं

गुल्ली डंडे की जगह पर

खेल हुए है क़ैद स्कूलों में

उनके लिए ही ट्रॉफी जितने

कॉलेज में राजनीती की निति

बच्चों के मन के गलियारों में ।

बचपन बैठा है पिंजरों में

अपने ख्वाबों की उड़ान भरने को ।

खुले आकाश से बातें करता

अपने वजूद को तलाशता ।

बचपन शायद फिर…

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 11:21am — 9 Comments

सफ़र (कविता)

सफ़र

सोचा जब भी
सफ़र कर लूँ
शुद्ध हवा खा लूँ
पहाड़ो के बीच
किसी झरने के करीब
एक डेरा डाल लूँ
ख्वाबों में बादल
आने लगे ।
उमड़ते घुमड़ते एहसास
छू रहे थे बादल
पहाड़ों के शिखर को
हलके से झांक रहा था रवि
नर्म मुलायम मखमली चादर
डेरे के पास शर्मा रही थी
जो रवि को देख पुल्लकित
हो खिल गयी
और मैं इस सफ़र
का आनंद ले रही थी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 15, 2016 at 5:50pm — 4 Comments

माला

माला

छल, कपट ,धोखे के मोतियों
की माला ही पहना दो ।
इसे पहनकर एहसास ही
कर लूँगी ।
अपने दिल के करीब भी
रख लूँगी ।
सज जाऊँगी पूर्णतः ।
दर्द शायद कम हो जाये तुम्हारा
जीत का जश्न
फिर तुम मना लेना ।
आऊँगी संग तुम्हारे
उसी माला को पहन
रहूँगी साथ तब भी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 13, 2016 at 9:52am — 2 Comments

सर्द हवा (कविता)

सर्द हवा

इन सर्द हवाओं में
घुली हुई हैं यादें
वो वादियाँ पहाड़ों की
बर्फीली चादर ओढ़े
चले थे कभी
कदम दो कदम
साथ हुई थीं
बर्फीली नदी के धार
ठंडे पानी में
नहाने की ज़िद्द
छोटे छोटे कंकड़ पत्थर
रंग बी रंगी किनारे पर
चमकते थे
श्वेत पानी के बीच ।
उस पर से प्यार का एहसास
तुम्हारे करीब होने का आभास
याद आते है
सर्द हवा के झोंके
आज भी ।
लगता है करीब हो
तुम आज भी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 12, 2016 at 3:00pm — 6 Comments

ज़िन्दगी (कविता)

ज़िन्दगी

सोचा थोडा खेल लें
ज़िन्दगी मिली है
सो थोडा खेल लें
समय चलेगा अपनी चाल
समय के मोहरे बन
थोडा खेल लें ।
कभी पहाड़ों पर
चढ़ जाएँ
कभी बादलों पर घूम आयें
कभी मिटटी के बुत बन जाएँ
कभी माली बन
बगवान सवाँर ले।
कभी महके गुलाब की तरह
कभी काँटा बन चुभ जाएँ ।
ज़िन्दगी है
तो खेल है
खेलते रहे खिलाड़ी बन
ज़िन्दगी शायद ज़ी जाएँ ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 11, 2016 at 9:30pm — 2 Comments

कितना सरल होता है कुछ कहना

कितना सरल होता है कुछ कहना



कहना है कुछ ?

हाँ , तो कह दो न

कहना ही तो है ।



जुबाँ से ही तो कहना होता है न

बिना सोचे समझें भी कह सकते है

पूछे कोई तो कहना

जुबाँ फ़िसल गयी भाई ।



कहना किसीसे कभी कभी

चुभ जाता है

कभी किसीसे कुछ कहने पर

वो खुश हो जाता है ।



कहा -सुनी हो जाये

तो बढ़ जातीं हैं दूरियाँ कभी ।

कभी सुनने के लिए

कान तरस जाते हैं ।



कहो जो कहना चाहते हो

पर सुनो भी तो

तो दूजा कहना… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 7, 2016 at 5:00pm — 3 Comments

अजनबी गलियाँ

अजनबी गलियाँ

चलते चलते
महसूस हुआ
गलियाँ बेगानी लगीं
देखते रहे
इधर उधर
नज़रे बैमानी लगीं
थे बहुत अपने यहाँ
पर सभी बेगाने लगे
खोजा बहुत उन सबको
शायद कोई अपना लगे ।
तंग गलियों में
चिपके हुए घरों के बीच
बस देखती रही यूँही ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 5, 2016 at 6:30pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service