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Alka Gupta's Blog – November 2013 Archive (3)

काम वाण

पूरण करे प्रकृति अभिमंत्रित काम ये काज |

सृष्टि निरंतर प्रवाहित होवे निमित्त यही राज ||

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हाय ! कौन आकर्षण में

बींध रहा है ...मन आज |

नयन ही नयनों से 

खेलन लगे हैं रास ||



घायल हुआ मन...अनंग

तीक्ष्ण वाणों से आज |

टूट गए बन्धन ...लाज 

गुंफन के सब फांस ||



करने लगे..... झंकृत...…

Continue

Added by Alka Gupta on November 23, 2013 at 10:30pm — 12 Comments

बेटी

मासूम सी हूँ मैं .... नाजुक सी |

अभिलाषा भी .... एक नन्हीं सी |

जीवन ये जो ...दिया विधाता ने |

जियूँ ना जीवन क्यूँ अधिकारी सी|| (1)



लगा था मुझे .. मैं भी .. इक इन्सान हूँ |

डूबी जिन्दगी क्यूँ आँसुओं में .. हैरान हूँ |

बता दो कोई .. इस दर्द की दवा क्या है ?

या मैं सिर्फ .. हवस का एक सामान हूँ || (2)



मिल ना पाए सजनी कोई…

Continue

Added by Alka Gupta on November 22, 2013 at 10:50pm — 4 Comments

हाइकु

पार गगन  

पंक्षी सा उड़ जाऊं 
पंख पसार ...(१)

मीठी वानी 
कुटिल सयानी सी 
मन की काली...(२)

है मतवाली
फिरती डाली डाली 
कोयल ये काली ...(३)

------अलका गुप्ता -----

नोट - यह मेरी स्व रचित मौलिक रचना है 

Added by Alka Gupta on November 18, 2013 at 3:30pm — 11 Comments

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