तेरे मेरे दोहे :......
बनकर यकीन आ गए, वो ख़्वाबों के ख़्वाब ।
मिली दीद से दीद तो, फीकी लगी शराब ।।
जीवन आदि अनंत का, अद्भुत है संसार ।
एक पृष्ठ पर जीत है, एक पृष्ठ पर हार ।।
बढ़ती जाती कामना ,ज्यों-ज्यों घटता श्वास ।
अवगुंठन में श्वास के, जीवित रहती प्यास ।।
कल में कल की कामना ,छल करती हर बार ।
कल के चक्कर में फँसा , ये सारा संसार ।।
बेचैनी में बुझ गए , जलते हुए चराग़ ।
उम्र भर का दे गए, इस…
Added by Sushil Sarna on November 28, 2021 at 1:30pm — 16 Comments
बन्धनहीन जीवन :......
क्यों हम
अपने दु :ख को
विभक्त नहीं कर सकते ?
क्यों हम
कामनाओं की झील में
स्वयं को लीन कर
जीवित रहना चाहते हैं ?
क्यों
यथार्थ के शूल
हमारे पाँव को नहीं सुहाते ?
शायद
हम स्वप्न लोक के यथार्थ से
अनभिज्ञ रहना चाहते हैं ।
एक आदत सी हो गई है
मुदित नयन में
जीने की ।
अन्धकार की चकाचौंध को
अपनी सोच की हाला में
मिला कर पीने की…
Added by Sushil Sarna on November 10, 2021 at 1:54pm — 4 Comments
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