"हे परवरदिगार! ये तूने मुझे आज कैसे इम्तिहां में डाल दिया ?" उसने पीछे लेटे लगभग बेहोश, युवक को एक नजर देखते हुए हाथ इबादत के लिए उठा दिए।
...... रात का दूसरा पहर ही हुआ था जब वह सोने की कोशिश में था कि 'कोठरी' के बाहर किसी के गिरने की आवाज सुनकर उसने बाहर देखा, घुप्प अँधेरे में दीवार के सहारे बेसुध पड़ा था वह अजनबी। देखने में उसकी हालत निस्संदेह ऐसी थी कि यदि उसे कुछ क्षणों में कोई सहायता नहीं मिलती तो उसका बचना मुश्किल था। युवक की हालत देख वह उसके कपडे ढीले कर उसे कुछ आराम की स्थिति…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 20, 2016 at 10:30pm — 23 Comments
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