“तंत्र को पारदर्शी करो, तंत्र को पारदर्शी करो”। सरकारी दफ़्तर के बाहर सैकड़ों लोगों का जुलूस यही नारा लगाते हुए चला आ रहा था। अंदर अधिकारियों की बैठक चल रही थी। एक अधिकारी ने कहा, “जल्दी ही कुछ किया न गया तो जुलूस लगाने वाले लोग कुछ भी कर सकते हैं”। अंत में सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि तंत्र को पूर्णतया पारदर्शी बना दिया जाय।
कुछ ही दिनों में दफ़्तर की सारी दीवारें ऐसे शीशे की बनवा दी गईं जिससे बाहर की रोशनी अंदर न आ सके लेकिन अंदर की रोशनी बाहर जा सके। अब दफ़्तर का सारा काम काज…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 17, 2012 at 3:25pm — 14 Comments
(पूर्णतया काल्पनिक, वास्तविकता से समानता केवल संयोग)
बहुत समय पहले की बात है। जंगल में शेर, लोमड़ी, गधे और कुत्ते ने मिलकर एक कंपनी खोली, जिसका नाम सर्वसम्मति से ‘राष्ट्रीय वन निगम’ रखा गया । गधा दिन भर बोझ ढोता। शाम को अपनी गलतियों के लिए शेर की डाँट और सूखी घास खाकर जमीन पर सो जाता। कुत्ता दरवाजे के बाहर दिन भर भौंक भौंक कर कंपनी की रखवाली करता और शाम को बाहर फेंकी हड्डियाँ खाकर कागजों के ढेर पर सो जाता। लोमड़ी दिन भर हिसाब किताब देखती। हिसाब में थोड़ा बहुत इधर उधर करके…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2012 at 12:13pm — 16 Comments
बहर : २१२ २१२ २१२ २१२
बरगदों से जियादा घना कौन है
किंतु इनके तले उग सका कौन है
मीन का तड़फड़ाना सभी देखते
झील का काँपना देखता कौन है
घर के बदले मिले खूबसूरत मकाँ
छोड़ता फिर जहाँ में भला कौन है
लाख हारा हूँ तब दिल की बेगम मिली
आओ देखूँ के अब हारता कौन है
प्रश्न इतना हसीं हो अगर सामने
तो फिर उत्तर में नो कर सका कौन है
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 1, 2012 at 8:30pm — 13 Comments
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