दोहा पंचक. . . कागज
कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।
तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।
कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।
कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।
कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।
रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।
कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।
हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।
कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।
कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 3, 2024 at 8:57pm — No Comments
कुंडलिया. . . .
मीरा को गिरधर मिले, मिले रमा को श्याम ।
संग सूर को ले चले, माधव अपने धाम ।
माधव अपने धाम , भक्ति की अद्भुत माया ।
हर मुश्किल में साथ, श्याम की चलती छाया ।
भजें हरी का नाम , साथ में बजे मँजीरा ।
भक्ति भाव में डूब, रास फिर करती मीरा ।
सुशील सरना / 1-12-24
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Added by Sushil Sarna on December 1, 2024 at 9:10pm — No Comments
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