पुष्प श्रद्धा के ना चढ़ें तो अर्चना ही व्यर्थ है।
भाव जिसमें शुचित ना हो, सर्जना ही व्यर्थ है।।
तुम न कोलाहल सुनो,
ना ही करतल ध्वनि बिको।
सत्य के आधार पर
सुंदरम बन कर टिको।।
दृष्टिहीनों के समक्ष, अति नर्तना ही व्यर्थ है।
पुष्प श्रद्धा के ना चढ़ें तो अर्चना ही व्यर्थ है।।
भाव जिसमें शुचित ना हो, सर्जना ही व्यर्थ है।।
मेनका की कामना
और उसीकी उपासना।
व्यर्थ शालिग्रामों में है
फिर सत्य को…
Added by SudhenduOjha on September 10, 2018 at 11:00am — No Comments
Added by SudhenduOjha on September 4, 2018 at 5:00pm — 1 Comment
यूँ ही..........
चाहता मैं नहीं था गीत गाना कोई भी।
तुमने मेरे अधर पर क्यों शब्द लाकर रख दिये।।
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चाहता मैं नहीं था
गीत गाना कोई भी।
तुमने मेरे अधर पर क्यों
शब्द लाकर रख दिये।।
मैं मुदित था पक्षियों को
नभ में विचरता देख कर।
तुमने आकर आंख में क्यूँ
नीड़ उनके रख दिये।।
चंद्रमा हो साथ मेरे
यह कभी सोचा नहीं था।
सूर्य पथ में साथ होगा…
Added by SudhenduOjha on September 2, 2018 at 7:30am — No Comments
सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है
नारी कभी नग्न नहीं होती
नग्न होती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
नारी कभी नहीं रोती है-
रोती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
फिर…
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 6:30pm — 9 Comments
वो बेबसी का
कहर देखते हैं
हम भी अपना
शहर देखते हैं
उतर गया है
पानी सैलाब का
मिट्टी से सना
घर देखते हैं
शर्म, हया, अना
कहाँ बची है
झुक के सभी
दीवारो-दर देखते हैं
घोल दी गई कुछ
इस तरह मिठास
ज़ुबाँ में ज़हर का
असर देखते हैं
इस उम्र न आओगे
लौट कर यहाँ
हम न जाने किसकी
डगर देखते हैं
मौलिक एवम अप्रकाशित
सुधेन्दु ओझा
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 12:20pm — 1 Comment
कैसे-कैसे सवालों का जवाब है जिंदगी
कांटों के साथ-साथ गुलाब है जिंदगी
तुम समझ सके न जिसे हम समझ सके
ऐसे मसाएलों का अजाब (दुख/संत्रास) है जिंदगी
शज़र (वृक्ष) की ओट में चांद ठहर गया है
चांदनी कह रही है, माहताब है जिंदगी
मेरे औ चांद के जो दरम्यान था
शज़र का हल्का सा नक़ाब है जिंदगी
तेरी मुस्कुराहटों, रुसवाईयों से अलग
भूख और गुरबतों का असबाब है जिंदगी
तू रहे कहीं, मुझ से जुदा रह नहीं…
ContinueAdded by SudhenduOjha on August 13, 2018 at 10:30am — 3 Comments
चन्दन सा महका कर मन को बरसे काले मेह
चन्दन सा महका कर मन को
बरसे काले मेह
बूँद-बूँद में व्यथा समेटे
दहके कोई देह
हर आहट के धोखे ने
मुझको तहस-नहस कर डाला
सूनी वेदी पर खड़ी रही मैं
लिए हाथ में वर की माला
आएगा कि नहीं? हृदय में
उठते सौ संदेह
चन्दन सा महका कर मन को
बरसे काले मेह
बूँद-बूँद में व्यथा समेटे
दहके कोई देह
प्यास प्रेम की वो पहचाने
जो…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 7, 2018 at 3:08pm — No Comments
मुझे भी तुमसे मुहब्बत की आस है प्यारे।
कदम-कदम पे सलीबों की प्यास है प्यारे॥
ख़यालो-ख्वाब, तसव्वुर भी जुर्म होते हैं।
चले भी आओ हर नज़ारा उदास है प्यारे॥
मुझे भी पढ़ के किताबों में दफ्न कर देना।
वाकिफ हैं तुम्हारी आदत खास है…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 2, 2018 at 1:00pm — No Comments
क्या है कविता?
भाव-प्रवण शब्दों का
मोहक जाल
डम-डम, डिम-डिम
ध्वनियों का कमाल
प्रकृति में गुंजायमान,
अनहत नाद?
स्यात, प्रणय का…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 25, 2018 at 5:14pm — No Comments
है धुआँ-धक्कड़ और बवाल
चेहरे-चेहरे लिक्खे सवाल
कर नेकी दरिया में डाल
बाबा खेल-खिलांवे भइय्या
नाचे भक्तिन ताल-तलईय्या
चोर सियार सब होशियार
मूड़ी काटे भए चमार
ये सूअर हैं, हरामखोर हैं
इनकी लें हम उतार खाल
(उपरोक्त पंक्तियाँ ढोंगी बाबाओं के संदर्भ में हैं)
है धुआँ-धक्कड़ और बवाल
चेहरे-चेहरे लिक्खे सवाल
कर नेकी दरिया में डाल
जात अहीर, अहीरन के साथे
देश-मुल्क अब किसके…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 22, 2018 at 7:30pm — No Comments
जाहिल हैं कुछ लोग,
तुम्हें काफ़िर लिखते हैं।
अहले दीन की सुनो, तुम्हें ज़ाकिर लिखते हैं॥
वो जो इल्म के जानिब,
शमशीर ले कर निकला।
बाक़ी हैं कुछ लोग, उसे माहिर लिखते हैं॥
तड़पती प्यास लेकर आए
थे तुम जो सहरा से।
प्यार…
Added by SudhenduOjha on June 19, 2018 at 6:42pm — No Comments
जिसकी चाहत है
उसे हूर औ जन्नत देदे।
मेरे मौला मुझे बस अपनी अक़ीदत देदे॥
उतार फेंकें पैरहने -
शहंशाही दिल से।
हो सके तो हमें, तू ऐसी तबीयत देदे॥
रुक, मेरे किस्से में
तू क्योंकर नहीं शामिल।
तेरे किस्से में रहूँ मैं, ऐसी नीयत देदे॥
रात मेरी वस्ल की हो,
और साथ तेरा हो।
मेरे मौला इस रात को क़यामत देदे॥
वो मजबूरन जो सजदे पे
ईमान लेके आता है।
ऐसे मुसलमानों को भी अपनी नसीहत…
Added by SudhenduOjha on June 18, 2018 at 6:30am — No Comments
है अगर कोई मुसीबत,
हम तुम्हारे साथ हैं।
है अगर कोई फजीहत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
गूँजती हैं तूतियाँ,
नक़्क़ारखानों में मगर।
शहनाईओं की हो ज़रूरत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
पाँव में छाले लिए वह
दूर से आया बहुत।
उठ उसे देदो नसीहत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
आँधी औ तूफान से वह
रुक न पाएगा कभी।
संघर्ष ने की थी वसीयत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
लौट कर आई…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 9, 2018 at 9:00pm — No Comments
यूँ ही..............
मुझको यदि पढ़ना चाहोगे
कई बहाने मिल जाएँगे
मुझसे यदि बचना चाहोगे
कई बहाने मिल जाएँगे
हम दुनियावी मसलों को-
छोड़, यहाँ तक आ पहुंचे हैं
तुम, अपनी फिकरों को छोड़ो
कई बहाने मिल जाएँगे
खूब दिखाए बाग-तितलियाँ
औ खूब सुनाई गज़लें भी
कैसे डूब गई मैं तुझमें
कई बहाने मिल जाएँगे
कौन कह रहा तनहा हैं हम
हम से दूर हुए कब तुम थे?
मजबूरी टूटे बस…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 20, 2017 at 11:43am — No Comments
यूँ ही..............
अवसादों की खींच-तान हो,
तुमको मैंने देखा है
बादल तिरता आस्मान हो
तुमको मैंने देखा है
हर कारज के होने में
पाने में या खोने में
तुम ही सब अनुष्ठान हो
तुमको मैंने देखा है
आपा-धापी, गला-काट
बात-बात पर लाग-डांट
दुनिया से परेशान हो
तुमको मैंने देखा है
जगती के इस रेले में
औ विवाद के ठेले में
जलता सा जब मसान हो
तुमको मैंने देखा…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 20, 2017 at 11:27am — No Comments
दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥
जेठ की दोपहरी
पसीने का एहसास,
ताम्र वर्ण की-
अतृप्त प्यास॥
तेरी काँख के गंध
जैसा हूँ॥
दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥
सही वक़्त, सही लोग
मिल नहीं पाए।
शब्द बिखरे रहे,
अर्थ मिल नहीं पाए॥
उनींदी रातों की,
सिलवटों जैसा हूँ॥
दुनिया…
Added by SudhenduOjha on May 20, 2017 at 10:05pm — No Comments
Added by SudhenduOjha on March 16, 2017 at 2:35pm — No Comments
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुधेन्दु ओझा
Added by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:30pm — No Comments
गिरा हुआ हूँ मुझको उठाओ कभी-कभी
गिरा हुआ हूँ मुझको
उठाओ कभी-कभी
आँखों में यूंही लौट के,
आओ कभी-कभी
हसरत थी कि झूम के,
होंठों को चूम लूं
हौसले को मेरे,
बढ़ाओ कभी-कभी
जो भी मिला वही मुझे,
कुछ दाग़ दे गया
दागों की दास्ताँ भी,
सुनाओ कभी-कभी
राहों में रोक कर मुझे,
दहला रहे सवाल
इनके जवाब लेके भी,
आओ कभी-कभी
तुझे साथ लेके चलने पे,
ज़माने को…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:30pm — 6 Comments
मेरी हर अच्छी बात तुम हो.
तुम कहाँ हो,
क्यों गुम-सुम हो.
सुनो,
मेरी हर अच्छी बात
तुम हो.
अब, दल-दल साफ हो गया है.
उफ़्फ़ ये बसंत
और खुशबू,
मौसम भी 'आप' होगया है.
हरी दूब पर आँखें,
मन कहीं और उलझा है,
तुम नजदीक हो,
पर छूने नहीं देता,
प्यार एक अजीब-
सा फलसफा है.
जाने कैसे,
लोग तुम्हें, देखते ही-
पहचान लेते हैं.
हमें तो हरपल,
आप,
नए दिखते…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:00pm — No Comments
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