खिड़की से नज़र आता
भूतिया वो पेड़
जिसकी हर एक शाख
पतझड़ की सोच में डूबी
मानो उंगलियाँ
और पत्ते...
आसेबी हवा के ज़ोर…
ContinueAdded by Nutan Vyas on January 24, 2012 at 7:21pm — 2 Comments
नहीं जो हौंसला होता,
न तू काफ़िर हुआ होता |
सभी को भूल जाती मैं,
न कोई रतजगा होता |
न दी आवाज़ ही होती,
न कोई सिलसिला होता |
कहानी कौन कर पाता,
किसे कब कुछ पता होता |
ग़ज़ल तो बस ग़ज़ल होती,
न कोई ज़लज़ला होता |
न आती मौत इंसां को
न सोने को मिला होता |
बड़ी उलझन है उलझी सी,
न होती मैं तो क्या होता |
Added by Nutan Vyas on January 21, 2012 at 3:00pm — 9 Comments
अवश्य ही कट जाएगा,
एक दिन वह भी मुझसे,
जो शेष बचा रहा अब तक,
स्वार्थ में अपने...
नहीं इसलिए कि ,
उसका है ध्येय अनुचित
वरन यही तो है
सृष्टि का ऋत!
Added by Nutan Vyas on January 17, 2012 at 9:30am — 1 Comment
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