कल मैंने अपनी अप्रकाशित
कविताओं का एक बण्डल
नुक्कड़ के कोने पर बैठने वाले
छोले बेचने वाले को सौंप दिया
उसने इसे मुँह बंद करके हँसते हुए…
ContinueAdded by RAJEEV KUMAR JHA on March 30, 2013 at 10:31am — 6 Comments
तनहा कट गया जिन्दगी का सफ़र कई साल का
चंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर
मौसम है बादलों की बरसात हो ही…
ContinueAdded by RAJEEV KUMAR JHA on April 9, 2012 at 8:30am — 7 Comments
Added by RAJEEV KUMAR JHA on April 6, 2012 at 10:30am — 16 Comments
Added by RAJEEV KUMAR JHA on March 17, 2012 at 9:00am — 9 Comments
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