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तनहा कट गया जिन्दगी का सफ़र कई साल का

चंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर

मौसम है बादलों की बरसात हो ही जाएगी

हंस पड़ी धूप तभी इस ख्याल पर

 

फिर कहाँ मिलेंगे मरने के बाद हम

सोचते ही रहे सब इस सवाल पर

खुशबुओं की राह से एक दिन गुजर गया

कहाँ से आ गई ये राह दीवाल पर

 

शायद इन रस्तों से होकर ख्वाबों में गुजरे

दिखे हैं मुझको सहरा चांद हर जर्रे पर

आसमान थर्राता था जिन आवाजों की जुम्बिश पर

बहरा चांद भी चुप है मेरी आवाजों पर

 

तेरा आँचल हवाओं में ऐसे लहराता है

दिखे है लहरा चांद नदी के दर्पण पर

और भी छलक जाती हैं निगाह मिलाकर

हश्र तो ये है तुमसे मुलाकात पर

 

जिसे देखकर बढ़ी जाती है प्यास हर पल

हाल तो ये है लगी झड़ी बरसात पर

जरा गौर फरमाईए 'राजीव' की इस बात पर

उस चांदनी रात का जिक्र क्यों न हो इस ख्याल पर

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2012 at 9:31pm

शायद इन रस्तों से होकर ख्वाबों में गुजरे

दिखे हैं मुझको सहरा चांद हर जर्रे पर

आसमान थर्राता था जिन आवाजों की जुम्बिश पर

बहरा चांद भी चुप है मेरी आवाजों पर

 

तेरा आँचल हवाओं में ऐसे लहराता है

दिखे है लहरा चांद नदी के दर्पण पर

और भी छलक जाती हैं निगाह मिलाकर

हश्र तो ये है तुमसे मुलाकात पर

प्रिय राजीव जी ...सुन्दर गजल ...प्रिय प्रियतमा के नाजुक बंधन ....कौन आये बीच में चाँद के .....भ्रमर ५ 

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 12, 2012 at 3:41pm

आदरणीय प्रदीप जी .धन्यवाद ! सराहना के लिए आभार.

दिल में उतर गई तहरीर आपकी

नजर  उठा  के  देखा  थी  वो  तस्वीर  आपकी.

बहुत खूब.आपकी प्रतिक्रिया ने आह्लादित कर दिया.

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 12, 2012 at 3:36pm

धन्यवाद ! आदरणीय जवाहर जी.सराहना के लिए आभार.

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 12, 2012 at 3:35pm

धन्यवाद ! सरिता जी.सराहना के लिए आभार.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 10, 2012 at 12:43pm

शायद इन रस्तों से होकर ख्वाबों में गुजरे

दिखे हैं मुझको सहरा चांद हर जर्रे पर

आसमान थर्राता था जिन आवाजों की जुम्बिश पर

बहरा चांद भी चुप है मेरी आवाजों पर

aavaj do kahan ho tum dunia meri javan hai 

aadarniya rajiv sir ji, saadar abhivadan

dil main utar gayi tahrir aapki

najar utha ke dekha thi vo tasvir aapki. badhai.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2012 at 10:26pm

तेरा आँचल हवाओं में ऐसे लहराता है

दिखे है लहरा चांद नदी के दर्पण पर

और भी छलक जाती हैं निगाह मिलाकर

हश्र तो ये है तुमसे मुलाकात पर

बहुत ही सुन्दर! झा  जी  बधाई !

Comment by Sarita Sinha on April 9, 2012 at 2:21pm

rajiv ji namaskar, 

bahut hi khubsurat is ghazal ki badhai swikar kijiye....

insan kitna bhi mazbut dikhe par andar koi n koi nazuk dhaga to hota hi hai...

khubsurat nazuk ehsas...

badhai...

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