मन का चन्दन महक उठता है
तन कस्तूरी लगता है
दिल से दिल मिले यदि तो
सारा जग अपना लगता है
तुम्हें देख कानन तरूवर
विहँसने का उपक्रम करते
क्यों शाख पे लिपटी लताएं
क्यों पवन मंद मंद बहते
मरूस्थल में भी फूल खिलाना
तुमको ही क्यों आते हैं
झरने कैसे इठलाते हैं
पंछी क्यों सुर में गाते हैं
दसों दिशाओं से सुरभित
मानव मन की कस्तूरी
मन से मन यदि मिला रहे
तो कहाँ किसी से यह दूरी
जीवन का व्यापार यही है
जग की सारी प्रणय कहानी
तुममें ही सब छिपा हुआ है
सकल जगत ने यह जानी
Comment
आदरणीय झा जी,
सादर !
रचना तो भावपूर्ण है ही, चित्र भी बहुत सुन्दर
लगा है ! बधाई !
धन्यवाद ! आदरणीय प्रदीप जी.आप सबों के सानिंध्य में बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है.
धन्यवाद ! संदीप जी.सराहना के लिए आभार.
धन्यवाद ! प्रिय आनंद जी.सराहना के लिए आभार.
धन्यवाद ! प्रवीण जी. सराहना के लिए आभार.
bahut hi behtarin aur umda prastuti, aabhaar vyakt karta hu.
आदरणीय राजीव जी,
मनोहारी प्रस्तुति। दसो दिशाओं से सुरभित ... बहुत सुंदर.. वाह..!!
दसों दिशाओं से सुरभित
मानव मन की कस्तूरी
मन से मन यदि मिला रहे
तो कहाँ किसी से यह दूरी
aadarniya mahoday, saadar abhivadan .
chitr koot ke ghat pe bhai santan ki bhiir. tulsidas chandan ghisen tilak det raghuvir.
bahut sundar bhav evam prastuti. badhai.
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