For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – March 2016 Archive (5)

गीतिका(मनन)

राम-राम,सलाम संग होली का पैगाम:

#गीतिका#

30 मात्राएँ, 16 14 पर यति

मापनी 2*8 2*7

***

छौंरा-छौंरी खेले होली खिसिआये हैं काकाजी

अपने-काकी के लफड़े रिसिआये हैं काकाजी।

आयी है होली हुड़दंगी हैं रंगे रामू-रजनी

काकी रंगों से कतराती बिखिआये हैं काकाजी।

पकवानों से मन भरता कब मीठा-मीठा हो जाता

कुछ तीखी नमकीनी खातिर रिरिआये हैं काकाजी।

काकी कहती खुद को देखो देखा करते काकी को

मटका करती भर आँगन सज दिठिआये हैं काकाजी।

काकी कहती छोड़ो बूढ़े! अब तो… Continue

Added by Manan Kumar singh on March 24, 2016 at 8:11am — 2 Comments

गजल(मनन)

2212 2 22 22

गगरी कहो तो भरती कब है!

परवान चाहत चढती कब है।1



उफनी उमंगों की लहरी यह

चढती चली फिर गिरती कब है।2



कबसे रही भँवरों में फँसकर

नैया भला यह तिरती कब है।3



बाँहें पसारे सागर उछला

सिकता जरा भी घिरती कब है।4



उठते किले ख्वाहिश के कितने!

आशा अपूरित मरती कब है।5



टंगी नजर दर आहट खातिर

रुनझुन रूठी लय रचती कब है।6



धड़कन गिना दे पुरवा खुलके

महफिल कहीं भी सजती कब है ।7



भौंरा बिंधा है… Continue

Added by Manan Kumar singh on March 23, 2016 at 12:25pm — 5 Comments

गजल(व्यंग्य),मनन

2212 12 12
मछली बड़ी तो' जाल क्या?
निकली अगर मलाल क्या?
चारा बड़ा भला लगा
टोनाा गया बवाल क्या?
बंसी मगर रही कहूँ-
बेधार की,निहाल क्या?
पिटता रहा दफा दफा
पीटता अभी कपाल क्या?
घोंपे गये छुरे बहुत
बतला नमकहलाल क्या?
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on March 10, 2016 at 7:56pm — No Comments

गजल(मनन)

2122 2122 2122

आग से ही आग का संधान फिर फिर

हाथ जलता छल रहा इंसान फिर फिर।1



आग अपनी तो भली सबको लगी है

ढल रहा कितना सुलग दिनमान फिर फिर।2



आग सागर की उफनती किस कदर यह

और उठने को गला हिमवान फिर फिर।3



जब पवन ठिठका लता फिर है लजाई

आँसुओं में बह रहा तूफान फिर फिर।4



आग का मंजर गजल का वाकया है

बह्न सजती है जुड़े अरकान फिर फिर।5





जब मिली मंजिल मुसाफिर है थमा बस

फिर चला है हो रहा हलकान फिर फिर।6



गाँठ… Continue

Added by Manan Kumar singh on March 7, 2016 at 11:00am — 2 Comments

अभिमन्यु(अतुकांत कविता)

लड़ रहा वह युद्ध कबसे
पर थका कब?
घिर भी जाता अकेला
व्यूह में बेशस्त्र वह
हारता हिम्मत कहाँ?
लड़ता रहा बेखौफ वह
हाथ में पहिया भले टूटा हुआ
तो क्या हुआ?
हुंकारता दहला रहा वह
शूर वीरें को
जो बिके हर काल में
बेजुबां ही मर गये।
कैद मैं रहता कहाँ
फड़फड़ाता तोड़ता
भी वह कड़ी
रहता सदा ही मुक्त वह
जो कि परिंदा है।
लाख मारो मर नहीं सकता
'अभि' हर रोज जिंदा है।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on March 3, 2016 at 1:30pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
5 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Jul 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service