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राम-राम,सलाम संग होली का पैगाम:
#गीतिका#
30 मात्राएँ, 16 14 पर यति
मापनी 2*8 2*7
***
छौंरा-छौंरी खेले होली खिसिआये हैं काकाजी
अपने-काकी के लफड़े रिसिआये हैं काकाजी।
आयी है होली हुड़दंगी हैं रंगे रामू-रजनी
काकी रंगों से कतराती बिखिआये हैं काकाजी।
पकवानों से मन भरता कब मीठा-मीठा हो जाता
कुछ तीखी नमकीनी खातिर रिरिआये हैं काकाजी।
काकी कहती खुद को देखो देखा करते काकी को
मटका करती भर आँगन सज दिठिआये हैं काकाजी।
काकी कहती छोड़ो बूढ़े! अब तो भगवन को भज लो
कब से बात बढ़ाने खातिर दिकिआये हैं काकाजी।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on April 5, 2016 at 9:07am
आभार आपका
Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 1:31pm
अति सुंदर रचना

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