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Alka tiwari's Blog (7)

विश्वास

विश्वास
ढके शब्दों में नंगे हमाम पर लिखेंगे ,
समय थम कर पढ़ेगा इतना प्राणवान लिखेंगे,
हमने जब ठाना तो तस्वीर का रुख बदलकर माना,
हम सोच का एक स्रोत है, जब भी निकले अपनी जगह बना के माना
कुछ इतना खास कर गुजरेंगे ,
जब सचे-सच्चे अहसास शब्दों में ढालेंगे ,
हम वो जड़ है, जब चाहा तभी जड़ हुए ,जब चाहा जड़ कर दिया
बंद शब्दों में खुले आसमान पर लिखेंगे.
अलका तिवारी

Added by alka tiwari on November 4, 2010 at 2:01pm — 5 Comments

कविता

अन्तर्ध्वन्द

अमर प्रेम के अंकुर को ,
संकोच और अनजानी धूप ने,
यूँ झुलसाया,
पतझड़ आने को बौराया है,
मन बसंत में उलझा है,
उम्र ढलने को आई,
मन यौवन में अटका है,
संस्कार,मर्यादा,मान,परिधि,
सब पीछे छूटा,
मन विकल हो भागा,
रिश्ते नातों के फंदों से,
बुन गया यौवन सारा,
जब सबसे मुक्त हुआ,
मन बंधने को भागा........

अलका तिवारी

Added by alka tiwari on September 23, 2010 at 11:00am — 3 Comments

कविता

अधीरता

व्यग्र हो अधीर हो,कौतुक हो जिज्ञाशु हो ,
जोड़ ले पैमाना उत्थान का,
घटा ले पैमाना पतन का,
हुआ वही जो होना था,
होगा वही जो तय होगा,
परिणिति शास्वत विनिश्चित है ,
ईश्वरीय परिधि में,
मानवीय स्वाभाव न बदला है,न बदलेगा,
होगा वही जो होना है, शाश्वत युगों से.

....अलका तिवारी

Added by alka tiwari on September 16, 2010 at 3:35pm — 7 Comments

रंगीन आतंकवाद

रंगीन आतंकवाद





'जननी जन्म भूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसि' कि भावना से ओत-प्रोत एक युवा, सन्यासी,स्वामी विवेकानंद ने शिकागो कि धरती पर विश्व धर्म सम्मेल्लन में अपने व्याख्यान का प्रारंभ "DEAR SISTER AND DEAR BROTHER ...." से करके पूरी दुनिया में विश्व बंधुत्व के भाव से हिंदुस्तान का परचम लहराने वालI सन्यासी उस समय अपने भगवा वस्त्र में हिदुस्तान का मुकुट बना चमक रहा था,जिसे याद करके आज भी करोनो युवा उत्साह और स्फूर्ति व् नए उमंग से भर जाते हैं. उस सन्यासी, युवा को क्या पता था कि आगामी… Continue

Added by alka tiwari on September 1, 2010 at 5:42pm — 3 Comments

देशी वूमेन

प्रगति की गति उसकी धमनी में रक्त बन चले हैं,

सर ढककर ,शोहरत की शौपिंग कर रही है,

लक्की बैम्बू लगा किस्मत सवांर रही है,

किचन में किचन इकोनोमी प्रयोग कर रही है,

कभी हॉट,कभी कूल,कभी प्रीटी लग रही है,

पजामा पार्टी में मनचले गप्पे मरते हुए ,

सामाजिक मुद्दों की परिचर्चा में भाग ले रही है,

मेहनत के टैक्स देकर,सपनों को पूरा कर रही है,

ख्वाहिशों की होम डेलिवेरी घर बैठे ले रही है,

राठौर जैसे मनचलों से लड़ रही है,

कल्पना के आकाश इ एक नाजो-अदा से उड़से रही… Continue

Added by alka tiwari on August 21, 2010 at 1:07pm — 6 Comments

अधिवक्ता और नेता

अधिवक्ता और नेता



"जिन्हें मालूम है गरीबों की झोपड़ी जली कैसे? वही पूछते हैं ये हादसा हुआ कैसे?"

ये पंकितियाँ किसी शायर के मन में उमड़े उस व्यंगात्मक पहलू को दर्शाती हैं की जानते हुए भी पूछते हैं. इन्होने चाहे जिस मंशा से लिखा हो पर एक अधिवक्ता के नाते में इन पंकित्यों को ऐसे देखती हूँ की जानते तो हैं पर बात की तह तक पहुचना चाहते हैं ताकि कोई निर्दोष महज शको - शुबहा के आधार पर दोषी ना घोषित हो जाये.

अधिवक्ता का अर्थ होता है अधिकृत वक्ता, जब हमें कोई व्यक्ति अधिकार देता है तो… Continue

Added by alka tiwari on August 19, 2010 at 4:30pm — 7 Comments

व्याख्या (कविता)

व्याख्या
गूढ़ जीवन को सरल बोल दिए,
परिचय मिला जटिलता से,
सबको जीवन का सार बताया,
स्वयं बन गयी सारांश ताल,
स्वामिनी का रूप भी धर लिया,
पर मन बंदिनी से नहीं उबरा,
अंकुर ही मैंने अब तक रोपा है,
वाट वृक्ष बन नहीं किसी कोघोंटा है.

Added by alka tiwari on August 14, 2010 at 4:41pm — 3 Comments

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