For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr.sandhya tiwari's Blog (5)

दुकान (लघुकथा)

सडक के दांयी ओर पूजा जनरल स्टोर था और बांयी ओरगुप्ता प्रोवीजन स्टोर था।दोनो दुकाने आमने सामने थी। पूजा जनरल स्टोर गोरी चिट्टी नखरीली अदाओं से लबरेज लगभग बीस पच्चीस बर्ष की पूजा खुद सम्भालती थी। बांये अंग से बेकार पक्षाघात से पीडित गुप्ता जी अपनी दस बर्षीय बेटी तनु के साथ गुप्ता प्रोविजन स्टोर सम्भालते थे। जहाँ गुप्ता जी की दुकान में इक्का दुक्का ग्राहक आते बहीं पूजा को ग्रहको के चलते सांस लेने की फुर्सत नही मिलती। तनु ने इस बात को लेकर कितनी ही बार अपने पापा से शिकायत की लेकिन गुप्ता जी वही…

Continue

Added by Dr.sandhya tiwari on November 6, 2014 at 2:00pm — 14 Comments

कहानी : शगुन

माध्यमिक बोर्ड उत्तर पुस्तिकाओं की जंचाई चरम पर थी । मास्साब दनादन काॅपी जांचने में मशगूल थे। एकाएक ! एक काॅपी के दो पन्ने ही चेक कर पाये थे ,कि काॅपी में चिपका सौ का नोट, रोल नम्बर ,विद्यार्थी का नाम और एक टिप्पणी :

"कृपया नम्बर बढा दीजिये।"



अड़ोसी पड़ोसी मास्टर मास्टरनियों ने एक दूसरे को कनखियों से देखा । जैसे मन ही मन कह रहे हो ;

"हाय! ये काॅपी मेरे बंडल में क्यों न निकली ?"



बीस पच्चीस काॅपियों के बाद फिर एक काॅपी में पाँच सौ का नोट और कुछ वैसी ही मिलती…

Continue

Added by Dr.sandhya tiwari on October 25, 2014 at 2:00pm — 3 Comments

कहानी

जाने किस तानेबाने मे उलझी, मैं अपनी खिड़की पे खड़ी थी।

इतने में मैंने देखा - एक सदाबहार का पौधा जो कि खिड़की की चौखट और दीवार की संद से निकल कर लहलहा रहा था ।

उसके हरे चिकने पत्ते प्याजी रंग के फूल मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे, लेकिन दीवार में बरसात का पानी मरेगा , ये सोच कर मैंने उखाड़ने के लिये हाथ बढ़ाया ही था, कि नीचे गली से आवाज आई-

"पौधे ले लो पौधे"

मैंने देखा-तो ठेले पर देसी गुलाब, इंगलिश गुलाब ,बोगन बेलिया ,एरोकेरिया पाम की विभिन्न किस्में रखी थी।

ये इंगलिश…

Continue

Added by Dr.sandhya tiwari on October 19, 2014 at 10:30pm — 8 Comments

स्वामी (लघुकथा)

विश्वविख्यात संस्था के दो स्वामी जी मेरे घर पधारे ।

मैने आवभगत के पश्चात प्रश्न किया ; "महाराज आपको स्वामी क्यों कहा जाता है? "

उन्होने कहा; "जो अपने मैं का अर्थात् अहं का स्वामी हो। जिसे संसार के छल-छद्म डिगा न सके। जो गुणातीत हो, भावातीत हो। जिसे आत्मज्ञान हो गया हो वह स्वामी कहलाता है।"

"ओह ! कितने पहुँचे हुये हैं साधु-महाराज हैं।तुरीयावस्था को प्राप्त ।" मैं श्रद्धा से नत-मस्तक ।



थोडे दिन बाद सुना कि उनमें से एक स्वामी जी ने नाराज़ होकर दूसरा आश्रम स्थापित कर…

Continue

Added by Dr.sandhya tiwari on October 15, 2014 at 2:30pm — 7 Comments

लघुकथा : पुण्य (डाॅ संध्या तिवारी)

"क्या बताऊँ मेरा कुत्ता टाॅमी दो दिन से बीमार है, बचा हुआ सारा खाना फेंकना पडता है "
"अरे बो मेरी बर्तन चौका बाली महरी को दे देना वह बासा कूसा सब खा लेती है। दुआ देगी, तुम्हे पुण्य लाभ होगा।"
पडोस की भाभी ने गम्भीरता से कहा ।

डाॅ संध्या तिवारी

Added by Dr.sandhya tiwari on October 14, 2014 at 1:00pm — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service