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Dr.sandhya tiwari
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दुकान (लघुकथा)

सडक के दांयी ओर पूजा जनरल स्टोर था और बांयी ओरगुप्ता प्रोवीजन स्टोर था।दोनो दुकाने आमने सामने थी। पूजा जनरल स्टोर गोरी चिट्टी नखरीली अदाओं से लबरेज लगभग बीस पच्चीस बर्ष की पूजा खुद सम्भालती थी। बांये अंग से बेकार पक्षाघात से पीडित गुप्ता जी अपनी दस बर्षीय बेटी तनु के साथ गुप्ता प्रोविजन स्टोर सम्भालते थे। जहाँ गुप्ता जी की दुकान में इक्का दुक्का ग्राहक आते बहीं पूजा को ग्रहको के चलते सांस लेने की फुर्सत नही मिलती। तनु ने इस बात को लेकर कितनी ही बार अपने पापा से शिकायत की लेकिन गुप्ता जी वही…

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Posted on November 6, 2014 at 2:00pm — 14 Comments

कहानी : शगुन

माध्यमिक बोर्ड उत्तर पुस्तिकाओं की जंचाई चरम पर थी । मास्साब दनादन काॅपी जांचने में मशगूल थे। एकाएक ! एक काॅपी के दो पन्ने ही चेक कर पाये थे ,कि काॅपी में चिपका सौ का नोट, रोल नम्बर ,विद्यार्थी का नाम और एक टिप्पणी :

"कृपया नम्बर बढा दीजिये।"



अड़ोसी पड़ोसी मास्टर मास्टरनियों ने एक दूसरे को कनखियों से देखा । जैसे मन ही मन कह रहे हो ;

"हाय! ये काॅपी मेरे बंडल में क्यों न निकली ?"



बीस पच्चीस काॅपियों के बाद फिर एक काॅपी में पाँच सौ का नोट और कुछ वैसी ही मिलती…

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Posted on October 25, 2014 at 2:00pm — 3 Comments

कहानी

जाने किस तानेबाने मे उलझी, मैं अपनी खिड़की पे खड़ी थी।

इतने में मैंने देखा - एक सदाबहार का पौधा जो कि खिड़की की चौखट और दीवार की संद से निकल कर लहलहा रहा था ।

उसके हरे चिकने पत्ते प्याजी रंग के फूल मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे, लेकिन दीवार में बरसात का पानी मरेगा , ये सोच कर मैंने उखाड़ने के लिये हाथ बढ़ाया ही था, कि नीचे गली से आवाज आई-

"पौधे ले लो पौधे"

मैंने देखा-तो ठेले पर देसी गुलाब, इंगलिश गुलाब ,बोगन बेलिया ,एरोकेरिया पाम की विभिन्न किस्में रखी थी।

ये इंगलिश…

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Posted on October 19, 2014 at 10:30pm — 8 Comments

स्वामी (लघुकथा)

विश्वविख्यात संस्था के दो स्वामी जी मेरे घर पधारे ।

मैने आवभगत के पश्चात प्रश्न किया ; "महाराज आपको स्वामी क्यों कहा जाता है? "

उन्होने कहा; "जो अपने मैं का अर्थात् अहं का स्वामी हो। जिसे संसार के छल-छद्म डिगा न सके। जो गुणातीत हो, भावातीत हो। जिसे आत्मज्ञान हो गया हो वह स्वामी कहलाता है।"

"ओह ! कितने पहुँचे हुये हैं साधु-महाराज हैं।तुरीयावस्था को प्राप्त ।" मैं श्रद्धा से नत-मस्तक ।



थोडे दिन बाद सुना कि उनमें से एक स्वामी जी ने नाराज़ होकर दूसरा आश्रम स्थापित कर…

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Posted on October 15, 2014 at 2:30pm — 7 Comments

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At 6:30pm on October 15, 2018, TEJ VEER SINGH said…

जन्म दिन की हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ संध्या तिवारी जी।

At 12:43pm on October 15, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...

 
 
 

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"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
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"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
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"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
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"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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