माध्यमिक बोर्ड उत्तर पुस्तिकाओं की जंचाई चरम पर थी । मास्साब दनादन काॅपी जांचने में मशगूल थे। एकाएक ! एक काॅपी के दो पन्ने ही चेक कर पाये थे ,कि काॅपी में चिपका सौ का नोट, रोल नम्बर ,विद्यार्थी का नाम और एक टिप्पणी :
"कृपया नम्बर बढा दीजिये।"
अड़ोसी पड़ोसी मास्टर मास्टरनियों ने एक दूसरे को कनखियों से देखा । जैसे मन ही मन कह रहे हो ;
"हाय! ये काॅपी मेरे बंडल में क्यों न निकली ?"
बीस पच्चीस काॅपियों के बाद फिर एक काॅपी में पाँच सौ का नोट और कुछ वैसी ही मिलती जुलती टिप्पणी थी । मास्साब प्रसन्नचित्त।
मास्साब की आज की किस्मत से परोक्षतः जले भुने प्रत्यक्षतःप्रेम प्रदर्शित करते हुये एक साथी मास्साब ने पूछ ही डाला :
"घर से निकलते समय क्या शगुन हुआ था महाराज?"
मास्साब पहले तो सकुचाये फिर गद्गद कंठ से बोले :
"शगुन क्या ? वो भरी हुई बाल्टी देखी थी।" मास्साब कहकर झेंप गये.
"ओ ,हो ! जे बात " साथी मास्साब ने टंकी लगाई.
परिणाम आने पर मेधावी छात्र के 70% और बैकबेन्चर के 72% नम्बर थे। किसी का शगुन किसी का अपशगुन था I उस टाॅपर को क्या पता उसका रास्ता हरी बिल्ली काट गई थी।
डाॅ सन्ध्या तिवारी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुत ही बेहतर लघुकथा, बधाई आपको आदरणीया डा.संध्या जी
vaah hri billi ka jwaab nhin hr jgh ye logon ke bhagy bdlti hai
आदरणीय संध्या जी
हरी बिल्ली की करामत पर आपको बधाई i
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