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लघुकथा : पुण्य (डाॅ संध्या तिवारी)

"क्या बताऊँ मेरा कुत्ता टाॅमी दो दिन से बीमार है, बचा हुआ सारा खाना फेंकना पडता है "
"अरे बो मेरी बर्तन चौका बाली महरी को दे देना वह बासा कूसा सब खा लेती है। दुआ देगी, तुम्हे पुण्य लाभ होगा।"
पडोस की भाभी ने गम्भीरता से कहा ।

डाॅ संध्या तिवारी

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Comment

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Comment by Shubhranshu Pandey on October 28, 2014 at 12:04pm

किसका खाना फ़ेका जाता है? घर के सदस्यों का या टामी का???

इस बात पर कथा के तत्व निर्भर करते हैं..

सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 15, 2014 at 6:07pm

पुण्य लाभ की जय हो !

Comment by harivallabh sharma on October 15, 2014 at 4:50pm

कुत्ते से बच गया तो पुन्य...तीक्ष्ण प्रहार आज की मानसिकता पर..सुन्दर सटीक बधाई आपको.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 15, 2014 at 4:37pm

आजकल पुण्य की भी अपनी अपनी परिभाषाएँ गढ़ ली गईं हैं लोगों के द्वारा। लघुकथा सुन्दर हुई है डॉ संध्या तिवारी जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 15, 2014 at 1:33pm

फेकने से बढ़िया पुण्य ही कमा लिया जाय, यह सोच गलत भी नहीं है, खाना खराब होने से पहले यदि जरूरतमंद को दे दिया जाय तो उसका कई लाभ है। गलत तो वह सोच है जिसमे लोगो को लगता है कि मेहरी आदमी नहीं जानवर है जो बासी और खराब खाना भी खा लेगी।
खैर लघुकथा सराहनीय है, कुछ टंकण त्रुटियों पर ध्यान आपेक्षित है, बधाई आदरणीया संध्या तिवारी जी।

Comment by khursheed khairadi on October 15, 2014 at 9:34am

आदरणीया संध्या तिवारी जी ,मार्मिक प्रसंग है |सादर अभिनन्दन 

Comment by vandana on October 15, 2014 at 6:48am

उफ़ !!! मार्मिक लघुकथा आदरणीय 

Comment by विनय कुमार on October 14, 2014 at 11:46pm

सुन्दर लघुकथा , बधाई..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2014 at 11:36pm

भूखे की भूख है, पुन्य कमाने का अच्छा अवसर है. बढ़िया रचना आदरणीया डा. संध्या जी

Comment by somesh kumar on October 14, 2014 at 11:05pm

करारी चोट है |उन लोगों पर जो शायद अपनी जात भी भूल चुके हैं |  

सुंदर सृजन के लिए बधाई |

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