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Rana Pratap Singh's Blog – November 2012 Archive (1)

दीप पर्व पर एक गीत: फिर से दीप बने

कुहनी तक देखो कुम्हार के

फिर से हाथ सने

फिर से चढ़ी चाक पर मिट्टी

फिर से दीप बने

 

 

बंद हो गई सिसकी जो

आँगन में रहती थी

परती पड़ी जमीन…

Continue

Added by Rana Pratap Singh on November 13, 2012 at 11:24am — 6 Comments

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