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Satish mapatpuri's Blog – August 2012 Archive (2)

गुनाहगार बनाया क्यों ?

 

ऐ मालिक ! बता दे तू , कि बहार बनाया क्यों ?

गर बहार बना था , तो उजाड़ बनाया क्यों ?

चमन में खिलती हैं कलियाँ , कली से नेह भौरों को .

पर भंवरे काँप उठे उस वक़्त , आखिर खार बनाया क्यों ?

जुदाई प्यार की मंजिल , तड़पना दिल को पड़ता है .

दिवाना कहती है दुनिया , तो फिर यह  प्यार बनाया क्यों ?

मिलन की चाह होती है , मिलन होता मुकद्दर से .

तो मिलकर क्यों बिछड़ते हैं , आखिर दीदार बनाया क्यों ?

अगर मापतपुरी जालिम  , तो उस पे कर करम मौला .

ख़ता…

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Added by satish mapatpuri on August 31, 2012 at 2:15am — 4 Comments

कबीरा खड़ा बाजार में

 [ एक ]

कठपुतली भी हँस रही, देख मनुज का हाल.

सबसे बड़ा मदारी वो , लिखे जो सबका भाल.

कौन नचाता है किसे, क्या इसका परमान.

सबकी डोर पे पकड़ जिसे, कहते कृपानिधान.

 जिस उर में लालच बसे ,वहाँ कहाँ ईमान .

देय वस्तु पर नेह जिसे , सबसे बड़ा नादान.

जीवन गगरी माटी की , जिसका करम कोंहार .

सरग - नरक येही ठौर है , जिसका जस व्यवहार .

देने वाले ने दिया , एक सूर्य और सोम .

किन्तु मनुज ने बाँट ली , धरती नदियाँ व्योम .

कहत अभागा नियति का , नीयत नियत…

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Added by satish mapatpuri on August 3, 2012 at 1:27am — 6 Comments

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