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कैसे कोई हमको अलग कर पायेगा

क्या पता था राम को, कि ऐसा दिन भी आएगा.
उनकी अयोध्या में ,उन्हें खैरात बांटा जायेगा.
जिस ज़मीं पर ठुमक-ठुमक, भगवान को चलना पड़ा था.
जिस जगह नारायण को, नर रूप में आना पड़ा था.
भावी को भी क्या पता था, ऐसा दिन भी आयेगा.
राम के अस्तित्व को, मुद्दा बनाया जाएगा.
क्या पता था राम --------------------------------
हिन्दू मुस्लिम हैं अलग, ये कब कहा था राम और रहमान ने?
मंदिर मस्जिद है जुदा, क्या यह सिखाया है खुदा भगवान ने?
नींव नफरत है धरम की, है लिखा गीता में या कुरान में?
सच तो है, यह सब सिखाया है हमें इंसान ने.
अब भी अगर ना चेते, तो सब कुछ ख़तम हो जायेगा.
क्या पता था राम --------------------------
शुक्र है मंदिर - मस्जिद ही नहीं, यहाँ न्याय का मंदिर भी है.
शुक्र है भाईचारा और, जज़्बात का मंज़र भी है.
शंख और आजान में, एक अमन का असर भी है.
साधना - नमाज़ में, उम्मीद की एक सहर भी है.
फिर पुरी कैसे कोई, हमको अलग कर पायेगा.
क्या पता था राम ------------------------------------
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2010 at 8:51pm
वाह सतीश भैया वाह, सामाजिक सौहार्द को समर्पित एक बेहतरीन कृति आप ने दिया है, आपके आगमन का प्रतीक्षा सदैव हम सबको रहता है ,
Comment by Ratnesh Raman Pathak on October 25, 2010 at 6:01pm
हिन्दू मुस्लिम हैं अलग, ये कब कहा था राम और रहमान ने?
मंदिर मस्जिद है जुदा, क्या यह सिखाया है खुदा भगवान ने?
नींव नफरत है धरम की, है लिखा गीता में या कुरान में?
सच तो है, यह सब सिखाया है हमें इंसान ने.
अब भी अगर ना चेते, तो सब कुछ ख़तम हो जायेगा.

बड़ी ही बेजोड़ लिखा है अपने ,देश की अखंडता,एकता को भंग करने वालो को यह पढने को मिल जाये तो इस कविता में चार चाँद लग जाएगी

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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