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प्यार चाहिए ( बाल दिवस सप्ताह पर विशेष )

हम बच्चों को आप बड़ों का प्यार चाहिए.
हमें भी फूलने- फलने का आधार चाहिए.

हम भी फूल इसी बगिया के, फिर बहार से क्यों वंचित हैं?
देश के हम भी नौनिहाल हैं, फिर दुलार से क्यों वंचित हैं?

हमें भी खुलकर हँसने का अधिकार चाहिए.
हमें भी फूलने - फलने का आधार चाहिए.

उस समाज का क्या मतलब, जहाँ हम अनपढ़ रह जाते हैं?
उस किताब की क्या कीमत, जिसको हम पढ़ नहीं पाते हैं?

हम सब को भी शिक्षा का सिंगार चाहिए.
हमें भी फूलने -फलने का आधार चाहिए.

आप के बच्चे पढ़ने जाते, हम जूठी थाली धोते.
बचपन को बंधक रखके, खेतों में मिट्टी ढोते.

हम सब को भी बचपन का उपहार चाहिए.
हमें भी फूलने -फलने का आधार चाहिए.

गोदी में ले कर के देखो, हम तेरे लाल ही जैसे हैं.
बच्चे तो मासूम ही होते, भेद यहाँ ये कैसे हैं.

बाबूजी! हमको भी प्यार-दुलार चाहिए.
हमें भी फूलने -फलने का आधार चाहिए.

गीतकार - सतीश मापतपुरी

मोबाइल - 9334414611

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 19, 2010 at 7:07pm
वाह सतीश भैया वाह, अभिभूत हूँ आपकी इस गीत को पढ़कर, सबकुछ तो है इस गीत मे , कुछ भी कहने को शेष नहीं बचा , बेहतरीन अभिव्यक्ति है | बधाई आपको |
Comment by Rash Bihari Ravi on November 19, 2010 at 4:46pm
bahut sundar

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