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पुलिस आ रही है (लघुकथा)

यूं तो छमिया रोज़ ही हाट से सब्जी बेचकर दिन ढले ही घर आती थी, पर आज तनिक देर हो गयी थी. वह थोड़ी देर के लिए अपनी मौसी से मिलने चली गयी थी. युग -ज़माना का हवाला देकर मौसी ने उसे यहीं रुक जाने को कहा था, पर बूढ़ी माँ को वह अकेले छोड़ भी कैसे सकती थी? जब वह मौसी के घर से चली थी तो सूरज अपनी अलसाई आँखें मुंदने लगा था. छमिया तेज-तेज डग भरने लगी , पर शायद रात को आज कुछ ज्यादा ही जल्दी थी. देखते ही देखते चारो ओर कालिमा पसर गयी. वह पगडण्डी पार कर रही थी. अचानक उसे बगल की झाड़ियों में खड़-खड़ की आवाज़ सुनाई पड़ी. एक आदमी उसका पीछा करने लगा. छमिया लगभग दौड़ने लगी. थोड़ी देर पीछा करने के बाद वह आदमी पीछे लौट गया. छमिया अभी भी दौड़ रही थी, अचानक उसे सामने से आती हुई पुलिस की जीप दिखी.यह क्या, छमिया उल्टी दिशा में भागने लगी---- जिस आदमी से वह डरकर भाग रही थी, उसीका बांह पकड़ कर बोली -"बचाई लो भईया!पुलिस आ रही है."
लेखक -- सतीश मापतपुरी

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Comment by satish mapatpuri on June 28, 2011 at 5:18pm
सौरभजी एवम  वसुधा निगमजी, हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद और अभिवादन.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 28, 2011 at 4:03pm

लघुकथा एक साँस में पढ़ गया. मेरा नमस्कार.

Comment by Vasudha Nigam on June 28, 2011 at 3:27pm
आज के सच पर बहुत बेहतरीन कटाक्ष हैं
Comment by Rash Bihari Ravi on December 29, 2010 at 7:31pm
bahut badhia kahani
Comment by satish mapatpuri on December 6, 2010 at 12:54pm
हौसलाफजाई के बहुत -बहुत शुक्रिया नवीन जी , भास्कर जी .
Comment by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 8:16am
बहुत अच्छे !

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