For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बच्चों की फरियाद


बंजर धरती दूषित हवा - जल, जंगल कटते जायेंगे.
 ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.
हरी - भरी धरती को आपने, बिन सोचे वीरान किया.
मतलब की खातिर ही आपने, वन - जंगल सुनसान किया.
नहीं बचेगा इन्सां भी, गर जीव - जंतु मिट जायेंगे.
ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.
ऐसे पर्यावरण में कैसे, कोई राष्ट्र विकास करेगा.
अब भी गर बेखबर रहे तो, माफ नहीं इतिहास करेगा.
रहते समय नहीं चेते तो, कर मलते रह जायेंगे.
ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.
अब भी खास नहीं बिगड़ा है , अब भी वक़्त सम्हलने का है.
कलियाँ कुम्हला गयी हैं फिर भी, अब भी मौसम खिलने का है
पर्यावरण की रक्षा करके, ही उन्नति कर पायेंगे.
ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.                       

          ---- सतीश मापतपुरी

Views: 495

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2012 at 12:00pm

आदरणीय सतीश जी, सादर अभिवादन.

चेतावनी  और सन्देश देती रचना.  अभी  समय है. बधाई.
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 24, 2012 at 7:37am
आदरणीय सतीश सर जी!प्रणाम
एक सार्थक रचना के लिए कोटिश: बधाई।

वैसे सर दुनिया में बहुत सारे दिवस हैं,उसी में से एक दिवस ये पृथ्वी दिवस है।जितने भी दिवस आते है चले जाते है,उनका केवल एकदिवसीय मतलब है बाकी बेमतलब।
क्या ऐसा ही कुछ पृथ्वी दिवस के संदर्भ में नहीं कहा जा सकता?
अगर कहा जा सकता है-
तो इसपर इतनी सारी कविताओं,इतने सारे आयोजनों की प्रासंगिकता क्या है?
और अगर बेमतलब नहीं कहा जा सकता तो-हमने दूसरों को सीख देने के अलाला खुद क्या किया यह महत्तवपूर्ण हो जाता है।इस लिहाज से मैं रचनाधर्मी वर्ग(साहित्यकार-कवि एवं लेखक) को दुनिया का सबसे अधिक सजीव प्राणी मानता हूं।क्योंकि वह समाज एवं समाज में घटने वाली घटनाओं के प्रति अधिक सजग होता है।अत: हमारा नैतिक फर्ज इस पृथ्वी दिवस के संदर्भ में सर्वाधिक हो जाता है।अब हम खुद सोचें कि इस के लिए हमने क्या किया अपने कामों का ब्यौरा देखें।क्या कविता,कहानी,उपन्यास में लिखी बातों को हमने ऊपर चरितार्थ किया है,या यह कोरा उपदेश ही है।अगर कोरा उपदेश है तो पर्यावरण का कोई भला होने वाला नहीं है।मेरा मानना है वर्तमान साहित्य में कोई ग्रन्थ रामायण,रामचरित मानस,महाभारत,गोदान या अन्य कालजयी कृति इसलिए नहीं बन रही है या उसस्तर की नहीं हो रही है क्योंकि यथार्थ के बावजूद वह प्रयोगात्मक और खुद के व्यावहारिक धरातल पर नहीं लिखी गई होती है।
पुनश्च एक प्रभावशाली सार्थक रचना के लिए कोटिश: बधाई।
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 24, 2012 at 3:29am

अब भी खास नहीं बिगड़ा है , अब भी वक़्त सम्हलने का है.
कलियाँ कुम्हला गयी हैं फिर भी, अब भी मौसम खिलने का है

आदरणीय मापतपुरी जी,

विशेष तौर पर आपकी पर्यावरणीय स्थिति पर आधारित इस रचना को नमन करना मेरे लिए अच्छा होगा| आपका हार्दिक आभार ऐसे संवेदनशील विषय पर अपने काव्यात्मक विचार रखने हेतु|

Comment by satish mapatpuri on April 24, 2012 at 1:28am

डॉ . प्राची जी, राणा जी, मृदु जी और मित्रवर सौरभ जी , सराहना के लिए आभार . सौरभ जी, आप तो समझ ही गएँ होंगे कि पृथ्वी - दिवस के लिए तैयार इस रचना को ही जैसे - तैसे करके चित्र प्रतियोगिता में डाल दिया था ,क्योंकि TOPIC लगभग एक ही था........ फर्क केवल छंद  का ही


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 22, 2012 at 10:40pm

आदरणीय सतीशजी, इस रचना पर मेरा सादर अभिवादन स्वीकार करें. उद्येश्यपरक रचना हेतु ढेर सारी बधाइयाँ.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 22, 2012 at 9:51pm

आदरणीय सतीश सर बहुत ही ज्वलंत समस्या आपने कविता के माध्यम से रखी है जो की यथार्थता और संवेदना के भाव मुखरित कर रही है, ऐसी उत्कृष्ट रचना पर ह्रदय से हार्दिक बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 22, 2012 at 12:25pm

आज के भौतिकतावादी समाज द्वारा खड़ी गई सबसे बड़ी समस्या को विषय बनाना ही इस कविता की सफलता है|हम समवेत स्वर में आपके साथ आवाज मिलाते हुए खड़े हैं|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service