बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
कोई बतलाये कहाँ गायब हुआ है इन्किलाब
एक वो भी वक्त था तनकर चला करता था वो
एक ये भी वक्त आया है छुपा है इन्किलाब
खूबसूरत आज दुनिया बन गई है कत्लगाह
जालिमों से मिल गया है अब सुना है इन्किलाब
है अगर जिन्दा तो आता क्यों नहीं वो सामने
ऐसा लगता है कि शायद मर चुका है इन्किलाब
लोग कहते हैं गलतफहमी है ऐसा है नहीं
आज भी बहुतों के सीने में है जिन्दा इन्किलाब
मौलिक अप्रकाशित
Comment
// इस हिसाब से पहले उर्दू सीखें फिर शायरी की जाये।//
जनाब राम अवध विश्वकर्मा जी, आदाब। किसी को भी( उर्दू ज़बान में ) 'शाइरी' (कविता ) करने के लिए कोई बाध्य नहीं करता है, हिन्दी ज़बान में भी कविता / शाइरी करने वाले बड़े ऊँचे, नामवर और प्रसिद्ध कवि हुए हैं। और हिंदी बहुत शानदार ज़बान है और भारत में अधिकतम लोग हिन्दी से प्यार करते हैं और हम सभी ओ बी ओ सदस्यगण हिन्दी (देवनागरी ) लिपि में ही अपनी हर बात कहते हैं, मगर जब हम 'शाइरी' (जो कि मूलतः अरबी, फ़ारसी और बाद अज़ाँ उर्दू ज़बान की विधा है) की बात करतेे हैं तो हम भारतीयों केे ज़ह्न में उर्दू ज़बां में कहे गये मिर्ज़ा ग़ाालिब, मीर, इक़बाल, अहमद फ़राज़, जिगर या अन्य किसी भी उर्दूदांदां शाइर के चन्द अश'आ़र का अक्स उभर आता हैै जो पूरी तरह उर्दू में कहे गए होते हैं, इसी तरह जब हम हिन्दी कविता की बात करते हैं तो हिन्दी के प्रसिद्ध कवियों के नाम और उनकी शानदार कविताएं या दोहों की परिकल्पना होती है, ऐसा क्यों है? दर अस्ल ऐसा इस लिए है कि इन सभी शाइरों और कवियों ने अपनी अपनी भाषा में कही गयी हर रचना और हर विधा में भाषा की शुद्धता को बड़ी अहमियत दी है, ज़बान की पाकीज़गी और शुद्धता के बग़ैर कोई कभी भी उच्च कोटि की किसी रचना का निर्माण कर ही नहीं सकता है। हम अपनी रचनाओं में चाहे हिन्दी शब्दों का प्रयोग करें चाहे उर्दू शब्दों का भाषा की शुद्धता और शब्दों के चयन में जागरूक रहना अनिवार्य है। एक बात और कहना है कि जो भी हमारी त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण कराता है वह सच्चे अर्थों में में हमारा शुभ चिंतक होता है। सादर।
आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी
सादर अभिवादन
एक और अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकारें.जब आप उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो नुक्ते का उचित प्रयोग ज़रूरी है नहीं तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती. आपको उस्तादे मोहतरम समर कबीर और भसीन साहब की इस्लाह पर अमल करना चाहिए.
आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी
सादर अभिवादन
एक और अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकारें.जब आप उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो नुक्ते का उचित प्रयोग ज़रूरी है नहीं तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती. आपको उस्तादे मोहतरम समर कबीर और भसीन साहब की इस्लाह पर अमल करना चाहिए.
आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी
सादर अभिवादन
एक और अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकारें.जब आप उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो नुक्ते का उचित प्रयोग ज़रूरी है नहीं तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती. आपको उस्तादे मोहतरम समर कबीर और भसीन साहब की इस्लाह पर अमल करना चाहिए.
ल
आदरणीय रवि भसीन साहब जी सादर नमस्कार। आदरणीय समर कबीर सर की टिप्पणी की मैने उपेक्षा नहीं की। मैंने स्वीकार किया कि उर्दू के हिसाब से नुक्ता लगाना चाहिए ये सच है।मैंने कहां इसको नकारा। लेकिन ये भी सच है कि "ज" के लिए एक ही अक्षर हिन्दी वर्णमाला में है, आपने अतिरिक्त नुक्ता वाले और अक्षर जोड़ दिए हैं या हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वानों द्वारा जोड़ दिया गया है। उर्दू में जीम, जाल,जे , जे, ज्वाद, जोय , ज से शुरू होने वाले अक्षर हैं
उर्दू के विद्वान ज्वाद से शुरू होने वाले शब्द को ज्वाद से ही लिखेंगे वे न तो जीम से लिखेंगे और न ही जे या जाल से । अब मेरा इतना कहना है कि क्या हिन्दी वर्णमाला इन अक्षरों को केवल "ज" के नीचे एक नुक्ता लगाकर रिप्रेजेंट करेगा। हम हिन्दी भाषी हैं हमें पता है कि हिंदी के अक्षरों पर कहाँँ चन्द्रविंदी लगेगी कहाँ नहीं। इसी प्रकार जिसकी मातृभाषा उर्दू है उन्हेंं बखूबी पता है कहाँ नुक्ता लगना चाहिए कहाँँ नहीं। क्योंकि उन्हें उनका उच्चारण पता है।वे इस भाषा मेंदक्ष हैं। लेकिन हिन्दी भाषा भाषी नहीं। मेरे समय में तो नुक्ता वाला ज तो पढ़ाया ही नहीं गया।
ये पटल ही सीखने और अपनी बात रखने का है। मैं इस पटल से कई वर्षों से जुड़ा हूँ।मैं आदरणीय समर कबीर साहब का आभारी हूँ जो इस पटल पर पोष्ट की गई ग़ज़लों पर अपना अमूल्य समय देकर सिखाते हैं।मैने भी बहुत कुछ यहाँ सीखा है।मुझे आज भी सीखने में कोई गुरेज नहीं। सादर
//हिन्दी वर्णमाला में आज भी नुक्ता वाले अक्षर नहीं हैं। मैंने आम बोलचाल में आने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया है।//
आदरणीय, आप अगर ढूँढेंगे तो सहीह जानकारी अवश्य मिलेगी। आम आदमी और साहित्यकार/शाइर की भाषा में कम से कम right और wrong का अंतर तो होना ही चाहिए।
आदरणीय Ram Awadh VIshwakarma साहिब, आपको ग़ज़ल की पेशकश पर बधाई। जनाब मैं ये समझने में पूरी तरह असमर्थ हूँ कि नुक़्ते को लेकर कुछ शाइर इतना defensive और resistant क्यूँ हैं। अगर नुक़्ते का इस्तेमाल ग़ैर-ज़रूरी है तो फिर बिंदी और चन्द्रबिन्दु का इस्तेमाल भी छोड़ दिया जाए... क्यूँ न हमे, तुम्हे, यहा, वहा, कहा, क्यो लिखना शुरू कर दें? हुज़ूर, मैं पंजाब से हूँ, और पंजाबियों की उर्दू तो छोड़िये हिंदी की भी बुरी हालत होती है। मैं सारी ज़िन्दगी flower को 'fool' कहता रहा, और जब ये पता चला कि इसे 'phool' कहा जाता है तो बड़ा ग़ुस्सा आया कि स्कूल में किसी ने नुक़्ते का इस्तेमाल क्यूँ नहीं बताया। जब नुक़्ते का इस्तेमाल पता चला तो सीखना शुरू किया (जो सीखना ही नहीं चाहता उसका साहित्य से क्या लेना-देना?) मैं जब किसी की शाइरी पढ़ता हूँ जिसमें टंकण कि त्रुटियाँ होती हैं तो बड़ा अफ़सोस होता है कि हम अपनी ही भाषाएँ सहीह से नहीं लिख सकते, और 'हम' यानी 'साहित्यकार'! आप ये बताइये कि क्या आप बोलते समय 'jameen', 'jaalim', 'jindaa' कहते हैं? अगर आप 'zameen', 'zaalim', 'zindaa' कहते हैं तो बिना नुक़्ते के काम कैसे चलेगा?
//क्या "ज" के नीचे एक नुक्ता लगाने से सभी "ज" को रिप्रेजेंट किया जा सकता है या हिन्दी में उतने ही "ज" के अक्षर बनाने पड़ेंगे जितने उर्दू में हैं।//
जी, किसी शब्द में या तो नुक़्ता लगेगा या नहीं लगेगा।
नुक़्ता न लगाने से कुछ लोगों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, कुछ लोगों पे बुरा impression पड़ेगा, और कुछ लोग शायद आपकी शाइरी पढ़ेंगे ही नहीं। अपनी audience आपको ख़ुद चुननी है। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि नुक़्ता न लगाने से कहीं-कहीं बहुत गड़बड़ हो जाती है, जैसे:
जीना = to live
ज़ीना = staircase
खाना = to eat, food
ख़ाना = home (मयख़ाना, शराबख़ाना, कबूतरख़ाना, अहल-ए-ख़ाना, ख़ाना-ब-दोश)
बेगम = Mrs
बे-ग़म = without sorrow
गुल = फूल
ग़ुल = शोर (जैसे शोर-ओ-ग़ुल)
आप को बताने की कोशिश करता हूँ कि नुक़्ते से शब्द का उच्चारण कैसे बदल जाता है:
क = कौन
क़ = क़ौम (guttural sound, produced in the back of the throat)
ख = खान (mine)
ख़ = ख़ान (पठानों में surname, guttural sound, produced in the back of the throat)
ग = गाल
ग़ = ग़ालिब (guttural sound, produced in the back of the throat)
फ = फूल ('ph' sound)
फ़ = फ़ायदा ('f' sound)
ज = जग ('j' sound)
ज़ = ज़हर ('z' sound)
आख़िर में ये कहना चाहूँगा कि अगर समर कबीर साहिब जैसे उस्ताद, जिन्होंने पूरी पूरी libraries पढ़ी हुई हैं, आपकी ग़ज़ल पे समय लगा कर आप को कुछ समझाने और सिखाने का प्रयास कर रहे हैं तो कम से कम उनका एहतराम तो कीजिये। सादर
आदरणीय दयाराम जी आदाब। ग़ज़ल पसन्द करने के लिए सादर आभार
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