For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- रूह के पार ले जाती रही

212 212 212 212

1

एक आवाज़ कानों में आती रही

रूह के पार मुझको ले जाती रही

2

ख़्वाब आँखों को हर पल दिखाती रही

ज़िन्दगी उम्र भर बरगलाती रही

3

रूह लफ़्ज़ों में ढल कागज़ों पर उतर

बज़्म में आह-ओ-नाले सुनाती रही

4

उसने छोड़ा मुझे ऐसे अंदाज़ से

साँस थमती रही जान जाती रही

5

ढाई आख़र की चाहत में वो रात दिन

दिल से दिल चुपके-चुपके मिलाती रही

6

सुर सजा कर लबों पर मुहब्बत भरे

रागिनी रोज़ 'निर्मल' वो गाती रही

मौलिक व अप्रकाशित

स्वरचित

रचना निर्मल

Views: 1309

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on January 25, 2021 at 5:31pm

//रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही//

यूँ कहें तो:-

'रूह के पार मुझको बुलाती रही'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2021 at 4:55pm

आ. रचना बहन सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई। मेरे हिसाब से मिसरा यह करें तो अधिक अच्छा रहेगा

रूह सुन दर्द अपना भुलाती रही ..

Comment by Rachna Bhatia on January 25, 2021 at 4:01pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।

सर् सुधारने की कोशिश की है। देखें क्या सहीह है ?

एक आवाज़ कानों में आती रही

रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही

Comment by Rachna Bhatia on January 24, 2021 at 8:11pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् ग़ज़ल तक आने तथा मार्गदर्शन करने के लिए आपकी आभारी हूँ।र् सानी बदलने का प्रयास करती हूँऔर आपको दिखाती हूँ।जो लफ़्ज़ ग़लत हैं उन्हें फेयर में ठीक कर लेती हूँ।

सादर।

Comment by Rachna Bhatia on January 24, 2021 at 8:03pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी नमस्कार।ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए आपकी आभारी हूँ ‌

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 24, 2021 at 3:41pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, रूहानी अंदाज़ में अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, उस्ताद मुहतरम की इस्लाह पर ग़ौर कीजियेगा।  सादर।

Comment by Samar kabeer on January 24, 2021 at 2:49pm

मुहतरमा रचना निर्मल जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'रूह के पार मुझको ले जाती रही'

इस मिसरे में 'ले' शब्द में मात्रा पतन उचित नहीं, सुधार का प्रयास करें ।

'ज़िन्दगी उम्र भर बरगलाती रही'

इस मिसरे में 'बरगलाती' को "वरग़लाती" कर लें ।

'रागिनी रोज़ 'निर्मल' वो गाती रही'

इस मिसरे में 'वो' शब्द भर्ती का है,इसे यूँ कहें:-

'रागिनी रोज़ 'निर्मल' सुनाती रही'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service