For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उस उजाड़ से गांव में बस कुछ टूटीफूटी झोपड़ियां ही मौजूद थीं जो वहाँ के लोगों के आर्थिक दशा और सरकार के विकास के नारे की तल्ख सच्चाई बयान कर रही थीं. उसको थोड़ा अजीब लगा, उसने अपने स्टाफ की बात को गंभीरता से नहीं लिया था. दरअसल जब भी इस गांव के लोगों से वसूली की बात होती, स्टाफ मना कर देता कि वहाँ जाने से कोई फायदा नहीं होगा. "सर, वहाँ लोगों के पास अभी खाने को नहीं है, बैंक की किश्त कैसे चुकाएंगे", अक्सर उसे यही बात सुनने को मिलती थीं.

लेकिन उसे लगा कि शायद दूर होने और वहाँ पैदल जाने के चलते लोग जाना नहीं चाहते. "ठीक है, कल मैं वहाँ जाऊँगा, जिसने भी उस गांव को देखा है, मेरे साथ चलना", उसकी इस बात पर स्टाफ ने सर हिला दिया.

पहाड़ी पार करके लगभग तीन किमी पैदल चलना पड़ा था, तब इस गांव में दोनों पहुंचे थे. उसकी खोजती निगाह को पढ़कर स्टाफ ने बताया "सर, वह है किशना का घर". झोपड़े के आगे एक बकरी बंधी थी और दो छोटे छोटे अधनंगे बच्चे खेल रहे थे. उनकी आहट सुनकर एक महिला बाहर निकली, उसकी गोद में भी एक बच्चा था. वह अभी सोच ही रहा था कि इस बेहद कम उम्र की लड़की के तीन तीन बच्चे हैं तभी स्टाफ ने थोड़ा डांटते हुए कहा "किशना कहाँ है, बैंक का पैसा नहीं भर रहा है. देखो आज बड़े साहब को भी आना पड़ गया".

उस महिला ने उसकी तरफ देखा और बेहद दर्द भरे शब्दों में बोली "साहब, आज तीन दिन हो गए, किशना घर नहीं लौटा है. घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा है". उसकी समझ को जैसे लकवा मार गया, कहाँ पैसे के लिए कहने आया था और कहाँ ये हालत. उसने तुरंत स्टाफ को इशारा किया कि कुछ कहने की जरुरत नहीं है और हाथ जोड़कर वापस चलने को कहा. वापस मुड़ते समय उसने जेब से कुछ 100 के नोट चुपके से वहीं गिरा दिए, वह खुद उन रुपयों को सीधे देने की हिम्मत नहीं जुटा पाया.

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on April 9, 2021 at 5:28pm

इस सारगर्भित टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी

Comment by विनय कुमार on April 9, 2021 at 5:28pm

इस सारगर्भित टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on April 9, 2021 at 5:27pm
इस सारगर्भित टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ चेतन प्रकाश जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 9:07pm

आ. भाई विनय कुमार जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 6, 2021 at 6:06pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। एक कड़वी सच्चाई का बेहतरीन तरीके से वर्णन करती शानदार लघुकथा।

Comment by Chetan Prakash on April 4, 2021 at 6:07pm

भाई, विनय कुमार लघुकथा कथा  तत्व  में अद्भुत  कसावट  के होते  कथ्य  के उल्लेखनीय  निर्वहन  के कारण  से ही 'लघुकथाकार कही जाती ही है, कृपया  इस  कथन के संदर्भ  अपनी प्रस्तुति पर मनन  करें! इति !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service