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दिलबर है ना तो कोई रहबर है
हाल-ऐ-दिल सुनाए तो किसको
मिले हमसा हमको इस जहां में
खोल के ये दि ल दि खाए उसिको


फासले दरम्यान है हम दोनों के लेकि न
कदम न चले तो मिटेंगे वो कैसे
उन रेलों की पटरी को देखा है मैंने
मिलते नहीं पर संग चलते है जैसे


जो हम न रहे तो रोओगे तुम भी
दि ल से हमे तुम भुलाओगे कैसे
बदन पे तुम्हा रे जो लि ख गया है
मेरा नाम अब तुम मिटाओगे कैसे


है सपना अगर ये तो सोने हो दोना
अगर जग गया मैं तो पाओगे तुम क्या?
है नुक्सान तेरा भी मेरे तरह ही
भला सोए रहने में नुक्सान है क्या?


न देखोगे तुम तो हमे क्या मि लेगा
के पहले सा फि र ये चमन ना खिलेगा
ये गालियां भी होंगी ये सड़के भी होंगी
मगर तुमको हंसा हमसफ़र ना मिलेगा


थामेगा कोई जो दामन को तेरे

तुझे उसमे मुझसा सबर ना मिलेगा
है एहसास मुझको उसे इस जनम में
तेरा तन तो मि लेगा पर मन ना मिलेगा

हमने जो लेली संग फेरे कि सीके
उसे हमसा सितमगर सनम ना मिलेगा
दोनों ही तरसेंगे फिर एक दूसरे को
वो पहली नज़र का असर ना मिलेगा


ख़ुशी न मिलेगी के हम जितना भी रोलें
टुकड़ो के दि ल को हम जितना भी सीलें
मिलेगी जो फुर्सत हमें तेरे ही ग़म से
मिला लेंगे दिल फिर नए उस सनम से

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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Comment by AMAN SINHA on March 1, 2022 at 11:04am

आदरणिय मुसाफिर साहब, 

सराहना और बहुमुल्य टिप्पणी के लिये आपका दिल से आभार। 

सुधार की गुंजाईश तो हमेशा रहती ही है, फिर, मैंने तो अभी-अभी लिखना शुरु ही किया है। 

आशा करता हूँ आपके बहुमुल्य टिप्पणी लगतार मुझे अच्छा लिखने को प्रोत्साहित करती रहेगी। 

आप हौसला बढाना और मेरी गलतियांं बताने का कष्ट करते रहे।  

तहे दिल से आपका आभार 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2022 at 7:35am

आ. भाई अमन जी, रचना का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। रचना अभी समय चाहती है। थोड़े प्रयास से यह बेहतर हो सकती है। टंकण त्रुटियाँ भी है । 

Comment by Mayank Kumar Dwivedi on February 25, 2022 at 7:41pm

अनुपम सृजन आदरणीय

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