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वसन्त (अतुकान्त )

पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति अविचल,अपरिमित,
अव्याख्येय वसन्त

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Usha Awasthi on April 13, 2022 at 9:43pm

आदरणीय सुशील सरन जी, सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद

Comment by Usha Awasthi on April 13, 2022 at 9:41pm

आदरणीय पंकज कुमार जी, प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका।

Comment by Sushil Sarna on April 12, 2022 at 6:23pm
आदरणीया जी निस्संदेह आपका सृजन भावपूर्ण और सार्थक है । आदरणीय समर कबीर जी की टिप्पणी से मैं सहमत हूँ । यह वस्तुतः अतुकांत शैली न होकर दोहा शैली है जिसके नियमों का निर्वाह आवश्यक है । सादर नमन
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 7, 2022 at 5:22pm

आदरणीय सादर प्रणाम

आपकी रचना निःसन्देह दोहा छन्द आधारित है।

सभी दोहे भावात्मक दृष्टि से ठीक हैं...मात्र आपको मात्रा गणना पर ध्यान देना होगा और ध्यान दिया जाना आवश्यक भी है, क्योंकि आप रचना कर रही हैं अतः रचना मानकानुरूप होनी ही चाहिये।

शुभम भवतु

Comment by Usha Awasthi on April 6, 2022 at 3:42pm

आदरणीय समर कबीर जी ,आदाब। सच तो यह है कि जैसे भाव आते हैं ,मैं वैसे ही लिख देती हूँ। मात्राओं की गिनती नहीं करती। लय का अवश्य ध्यान रहता है।इसी कारण अतुकान्त लिख दिया।आपकी प्रतिक्रिया पाकर हर्ष हुआ। हार्दिक धन्यवाद आपका

Comment by Samar kabeer on April 6, 2022 at 3:06pm

मुह्तरमा  ऊषा अवस्थी जी आदाब, आपकी ये प्रस्तुति तो दोहों की है,आप इसे अतुकांत क्यों लिख रही हैं ?

इसुन्द्र प्रस्तुति हुई है ,बधाई स्वीकार करें I 

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