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अहसास की ग़ज़ल::; मनोज अहसास

2122    2122     2122     212

है तेरे दम से ही रौशन मेरे जीवन की बहार।
तू नहीं तो ज़िन्दगी में मिल नहीं सकता करार।

पास तेरे रहने का हासिल नहीं है वक़्त पर ,
मेरी साँसों में बसा है तेरी साँसों का खुमार।

ज़िन्दगी की उलझनों से तंग आ जाता हूँ जब,
याद आ जाता है मुझको तब तेरी बाहों का हार।

हर घड़ी तेरी कमी महसूस होती है यहाँ,
ये पराया शहर मुझको तोड़ता है बार बार।

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था,
है सफर इक रात का बस पर लगे सागर के पार

ज़िन्दगी का कर्ज़ सारा कर नहीं पाया अदा,
इसलिए लिक्खा गया है ज़िन्दगी में इंतज़ार।

नाम पर लिक्खी है तेरे आज ये पहली ग़ज़ल,
प्यार तुम पर आ रहा है आज मुझको बेशुमार।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 17, 2022 at 8:21am

आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। भाई समर जी का सुझाव उत्तम है । मिसरे और निखर गये है। शेष इंगितों में भी बदलाव का प्रयास करें। सादर...

Comment by मनोज अहसास on May 16, 2022 at 8:12pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर प्रणाम आपकी बहुमूल्य इस्लाह से ग़ज़ल लाभान्वित हुई है आप सदैव यूं ही आशीर्वाद बनाए रखें आपका बहुत-बहुत आभार

सादर

Comment by Samar kabeer on May 14, 2022 at 4:31pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

'पास तेरे रहने का हासिल नहीं है वक़्त पर'

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें :-

'वक़्त तेरे पास रहने का नहीं हासिल मगर '

'याद आ जाता है मुझको तब तेरी बाहों का हार'-- इस मिसरे में  बाहों  को 'बाँहों ' कर लें I 

'हर घड़ी तेरी कमी महसूस होती है यहाँ,
ये पराया शहर मुझको तोड़ता है बार बार'

इस शे`र को उचित लगे तो यूँ कहें :-

'हर घड़ी तेरी कमी महसूस होती है मुझे 
जब  पराया शह्र मुझको तोड़ता है बार बार'

'फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
है सफर इक रात का बस पर लगे सागर के पार'--इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ' देखिये I 

'ज़िन्दगी का कर्ज़ सारा कर नहीं पाया अदा,
इसलिए लिक्खा गया है ज़िन्दगी में इंतज़ार'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है , देखिएगा I 

'नाम पर लिक्खी है तेरे आज ये पहली ग़ज़ल,
प्यार तुम पर आ रहा है आज मुझको बेशुमार।'---इस शे`र में शुतर गुरबा दोष है, आप इतने समय से ग़ज़ल कह रहे हैं इस ऐब को नहीं  होना चाहिए आपकी ग़ज़ल में I 

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