नज़र में उलझन भरी हुई है, तमाम रस्ते उजड़ गये हैं ।
सँभलना जितना भी हमने चाहा, हम उतने ज्यादा बुरे गिरे हैं।
हमारे जैसा उदास कोई, हमें कहीं भी नहीं मिला पर,
हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं।
कभी नहीं वो कहेंगे हमसे, के उनके दिल में है प्यार अब भी,
सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं।
ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू ,जो बस गयी है मेरी रगों में,
ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें ग़म भी सजे हुए हैं।
कहाँ हो तुम दो जहां के मालिक, हमारे दिल में अंधेरा करके।
पुकार कर तेरा नाम कब से हमारे नाले भी थक चुके हैं।
यहाँ से आगे का रास्ता अब ,कटेगा कैसे ये फिक्र है बस।
खुदी की बेखुद तलाश में हम ,ख़ुदा से अपने बिछड़ गये हैं।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मुसाफिर साहब ग़ज़ल पर उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया
सादर
आदरणीय समर कबीर साहब ग़ज़ल पर महत्वपूर्ण इस्लाह देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया मैं आपकी बात मानने का बहुत प्रयास करता हूं लेकिन मेरे अंदर कुछ कमियां ऐसी हैं जिन को सुधारने में वक्त लगेगा आप कृपया करके मुझ पर ध्यान देते रहें क्योंकि ऐसे एक दो लोग ही हैं जिनसे मुझे सीखने को मिल रहा है और उन में आपका स्थान पहले नंबर पर है सादर
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब बहुत-बहुत शुक्रिया सादर
आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। भाई समर जी की बात का संज्ञान लें।
जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'सँभलना जितना भी हमने चाहा, हम उतने ज्यादा बुरे गिरे हैं'
इस मिसरे में 'बुरे गिरे हैं' ठीक नहीं लग रहा है,दूसरी बात ग़ज़ल में 'ज़ियादा' शब्द को 122 पर ही लेना उचित होता है,सुधार का प्रयास करें ।
"कभी नहीं वो कहेंगे हमसे, के उनके दिल में है प्यार अब भी'
इस मिसरे में 'के' को "कि" करना उचित होगा ।
'ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें ग़म भी सजे हुए हैं'
इस मिसरे में 'क्योंकि' पर बह्र टूट रही है,देखें ।
'कहाँ हो तुम दो जहां के मालिक, हमारे दिल में अंधेरा करके।
पुकार कर तेरा नाम कब से हमारे नाले भी थक चुके हैं'
इस शैर में शुतर गुरबा दोष है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-
'कहाँ है तू दो जहाँ के मालिक..'
एक बात ये कि ये सीखने सिखाने का मंच है इसलिए ग़ज़ल के साथ अरकान ज़रूर लिखा करें,दूसरी बात ये कि उर्दू शब्दों में कहीं आप नुक़्ते लगाते हैं कहीं नहीं लगाते,इस तरफ़ ध्यान दें,अब ये न कहना कि व्यस्तता इतनी है कि... अगर ये कहेंगे तो मैं कहूँगा कि रिटायर होने तक इन्तिज़ार करें फिर लेखन करना ।
आदाब। बेहतरीन विचारोत्तेजक। हार्दिक बधाई आदरणीय मनोज अहसास साहिब।
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