For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल::; मनोज अहसास

2×15

दूर कहीं पर धुंआ उठा था दम घुटता था मेरा भी
ख़्वाब में मैंने देख लिया था दिल सुलगा था मेरा भी

एक अदद मिसरा जो दिल से निकले और पहुँचे दिल तक
हर सच्चे शाइर की तरहा ये सपना था मेरा भी

टुकड़े टुकड़े दिल है पर मरने की चाह नहीं होती
तेरे अहसानों के बदले इक वादा था मेरा भी

मेरी आँखों की लाचारी तुम भी समझ नहीं पाए
खारे पानी के दरिया में कुछ हिस्सा था मेरा भी

दिल को यही दिलासा देकर काट रहा हूँ तन्हाई
इस मिट्टी के कुछ दानों पर नाम लिखा था मेरा भी

महफ़िल में कल बात चली थी चाहत के अफसानों की
मेरे दुश्मन बता रहे हैं ज़िक्र हुआ था मेरा भी

कागज़ की इक नाव को लेकर निकले देखे कुछ बच्चे
जाने क्यों याद आया मुझको इक सपना था मेरा भी

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on April 28, 2022 at 5:36pm

आदरणीय सौरभ पांडेय जी गजल पर आपकी उपस्थिति को देख कर मन बड़ा हर्षित हुआ एक समय वह था जब आप हमारी हर गजल पर इसी तरह इस्लाह करते थे लेकिन इस समय आप भी बिजी हैं हम भी बिजी हैं लेकिन आप आए तो बहुत अच्छा लगा मैं आपकी बात को पूरा पूरा मान देता हूं और इस को सुधारने का प्रयास करता हूं सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2022 at 10:43pm

भाई मनोज जी, मात्रिक बहर पर की गयी कोशिश पर बधाई स्वीकार करें. 

सुधार की जहाँ आवश्यकता थी, आदरणीय समर साहब ने इंगित कर ही दिया है. मेरा बस इतना ही कहना है कि मिसरों में संबंध और तार्किकता साथ-साथ निभायी जाती हैं. मेरा इशारा आखिरी शेर को लेकर है.

कहने का तात्पर्य यह है, कि, जब आपने कारण जान ही लिया कि बच्चे कागज की नाव लेकर निकले हैं तो फिर 'जाने क्यों याद आया मुझको' कहने की क्या जरूरत है ? आपको तो उला के अनुसार पता ही है कि सपना क्यों याद आया. 

विश्वास है, आप आशय समझ रहे होंगे. मैं शायद कह पाया. या, न कह पाया होऊँ. आप अन्यथा मत लीजिएगा.

शुभ-शुभ

Comment by मनोज अहसास on March 31, 2022 at 8:05pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश जी मंच पर आपकी उपस्थिति सुखद है आपका मार्गदर्शन मिलता रहे तो बड़ी कृपा होगी

सादर

Comment by मनोज अहसास on March 31, 2022 at 8:04pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय समर कबीर साहब आपका आशीर्वाद मिल जाता है तो ग़ज़ल पूरी हो जाती है बाकी हम प्रयास करेंगे जो आपने इस्लाह दी है उस पर पूरा पूरा अमल होगा

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2022 at 11:05pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on March 29, 2022 at 3:45pm

जनाब मनोज अह्सास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा  प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें I 

'हर सच्चे शाइर की तरहा ये सपना था मेरा भी'

इस मिसरे में 'तरहा' शब्द को 22 पर लेना उचित नहीं होता 'तरह' शब्द को 12 या 21 पर लिया जा सकता है 22 पर नहीं , सुधार का प्रयास  करें I 

'कागज़ की इक नाव को लेकर निकले देखे कुछ बच्चे'

इस मिसरे को उच्जित लगे तो यूँ कहें :-

'काग़ज़ की इक नाव लिये जब घर से निकले कुछ बच्चे '

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
13 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
13 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
15 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
15 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service