For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा पंचक. . . . .

अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत इसकी प्यास ।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।।

श्वास-श्वास में  आस का, रहता हरदम वास ।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।।

इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।।

जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत  उदास ।।

अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत इसकी प्यास ।।

सुशील सरना / 22-5-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 27, 2022 at 6:19pm

वाह वाह ! 

आदरणीय सुशील सरनाजी, छंदों के सांगोपांग रूप तो हमने बहुरे देखे-सुने हैं. लेकिन इस दोहा-पंचक ने तो सचमुच ही चकित कर दिया है जो आपकी दोहा पर लगातार सशक्त होती पकड़ का परिचायक है. 

हार्दिक बधाई.. बार-बार बधाई.. 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 27, 2022 at 3:40pm

//परम आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरी अक्षम्य त्रुटियों को नजरअंदाज करते हुए जिस विशालता का परिचय दिया है उसके लिए हृदय की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार । सुझाव पर थोड़ा और मार्गदर्शन करेंगे तो बन्दा आभारी होगा।//

आदरणीय सुशील सरना जी, आप की उक्त टिप्पणी किस संदर्भ में की गई है, स्पष्ट नहीं है, आ. चेतन प्रकाश जी ने कौन से सुझाव दिये हैं? उनकी ऐसी तो कोई टिप्पणी दृष्टिगोचर नहीं हो रही है। 

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2022 at 1:22pm
परम आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरी अक्षम्य त्रुटियों को नजरअंदाज करते हुए जिस विशालता का परिचय दिया है उसके लिए हृदय की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार । सुझाव पर थोड़ा और मार्गदर्शन करेंगे तो बन्दा आभारी होगा ।
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 26, 2022 at 5:45pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, शानदार अंदाज़ में 'दोहा पंचक' के रूप में प्रस्तुत की गयी आपकी यह रचना बेशक कोई नई विधा नहीं है जैसा कि आपने इसका कोई दावा भी नहीं किया है, लेकिन फिर भी आपकी पाँच दोहों की यह रचना जिस रोचक ढंग से सृजित की गयी है अपने आप में अनूठी है जो काव्य के प्रति आपके वैराग्य और विद्वता का पता देती है। 

अपनी विनम्रता और शिष्टता (सुशीलता) का परिचय तो आप अपने नाम के अर्थों को सार्थक सिद्ध करते हुए आदरणीय चेतन प्रकाश जी को दिये गये प्रत्युत्तर से दे ही चुके हैं।

वैसे भी ओ बी ओ के मंच पर दोहा पंचक के रूप में दोहे पहली बार नहीं रचे गये हैं पूर्व में भी ऐसा हो चुका है, दोहा पंचक ही क्यों इस मंच पर दोहा ग़ज़ल के रूप में भी हम सृजना देख चुके हैं, जो ओ बी ओ जैसे मंच की महानता का परिचायक है। 

यदि आप शोध करें, कुछ और प्रयोग करें और नियम-विधान तय करें तो मेरे विचार में इस प्रकार की सृजना को एक नयी विधा के रूप में विकसित कर पहचान दिला सकते हैं, मेरा भरपूर समर्थन और बधाईयाँ आपको। 

Comment by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 1:32pm
परम आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर प्रणाम - सर सृजन पर आपकी प्रतिक्रिया के संदर्भ में निवेदन है कि प्रथम मैंने पाँच दोहों को पंचक का नाम दिया ये किसी विधा विशेष का नाम नहीं ।दूसरी बात हर दोहा अपने आप में अलग है बस एक प्रयोग किया इसमें मैंने इस मंच पर कहाँ अराजकता की है । न तो मैंने विधा का अनुशासन तोड़ा है और न ही कोई खिलवाड़ किया है ।
आपके दिल को मेरे सृजन से ठेस पहुंची, इसके लिए क्षमा चाहूँगा । यदि इस सृजन से मंच की गरिमा को ठेस पहुंची है और यदि मंच प्रबंधन मण्डल कहता है तो मैं इस सृजन को बिना किसी तर्क के हटाने को तैयार हूँ । सच कहूँ तो इस प्रतिक्रिया से मेरा सृजन भी आहत हुआ है । आप वरिष्ठ हैं अगर इस अनुज से कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करें । सादर नमन सर
Comment by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 1:15pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by Chetan Prakash on June 23, 2022 at 12:03am

नमन, आ. सुशील सरना साहब, दोहा पंचक जैसी कोई विधा, पहली बार मैंने देखी जिसके पहले दोहे के दूसरे पद को आप, दूसरे दोहे के प्रथम पद केरूप मे, दूसरे दोहे के अन्तिम पद को तीसरे दोहे के पहले पद की तरह, तीसरे दोहे के दूसरे पद को चौथे दोहे के प्रथम पद जैसा और, चौथे दोहे के दूसरे पद को आप अपने पाँचवे दोहे का प्रथम पद बनाकर, साहित्यिक अराजकता का परिचय, ओ बी. ओ जैसे विशुद्ध काव्यात्मक मंच पर दे रहे हैं, आश्चर्य का विषय है ।
वर्तनी में, वीचियाँ, शब्द पहली बार मैंने पढ़ा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 6:32pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों को नये अंदाज में प्रस्तुतीकरण बहुत मनोहारी हुआ है । बहुत बहुत हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service