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उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२
*
सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा
ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।
*
अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती
चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा।२।
*
हो गया जग  ये  शीत का मौसम
धूप सी  तू  तो  गुनगुनी  बन जा।३।
*
मौत आकर खड़ी है द्वार अपने
एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।
*
मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल
आ के अधरों  पे  शायरी बन जा।५।
*
इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे
फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा।६।
*
काम आया  न  जो  नदी होकर
शाप उसको  है  तिश्नगी बन जा।७।
*
उस 'मुसाफिर' के पाँव मत बाँधो
जिस ने बोला  है  चाँदनी बन जा।८।
*
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Wednesday

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,

आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ. 

वैसे, कुछ मिसरों को लेकर आदरणीय समर साहब ने बेहतर सुझाव दिये हैं और एक मिसरा के बेबहर होने की बात उन्होंने कही है. उसका आपने संज्ञान लिया ही होगा.

निम्नलिखित शेर के लिए तो मैं बार-बार दाद दूँगा - 

इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे
फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा .. .. इस शेर का मेयार बहुत ऊँचा है. अलबत्ता, जंगली का विन्यास २१२ ही होगा. सो मिसरा बहर में है.  

या, फिर मकता..

उस 'मुसाफिर' के पाँव मत बाँधो
जिस ने बोला  है चाँदनी बन जा ...  .. वाह .. बहुत नाजुक कहन है. ’पहलू में बैठे रहें’ को किस अंदाज में आपने नकारा है. बहुत खूब. 

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय, और शुभकामनाएँ  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 8:51pm

आ. सम्पादक महोदय, सादर अभिवादन। गजल को फीचर श्रेणी प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 8:04pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on December 19, 2023 at 3:38pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'ईद आयी सी फिर खुशी बन जा'

इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं इसे यूँ कर सकते हैं :-

'ईद जैसी ही तू ख़ुशी बन जा '

'चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-

'तू मेरे वास्ते नदी बन जा '

'मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल'

ये मिसरा बह्र में नहीं है , देखें I 

'फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा '

इस मिसरे में मेरी जानकारी के अनुसार "जंगली" शब्द का वज़्न 22 होता है I 

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