For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी ले के चली, एक ऐसी डगर,
राह के उस पार, चलते हैं हम सफ़र. 

रात और दिन, मील के पत्थर जैसे हैं,
मोड़ बन जाते कभी, हैं चारों पहर.
  
फादना पड़ता है, दीवारें अनवरत,
ढूँढना चाहूँ मै, 'उसको' जब भी अगर.
 
शख्शियत में नये, बदलता हूँ धीरे से,
नये चेहरे मिले और, नये से राही जिधर.

द्वार-मंदिर मिले न मिले, पर चाहतें,
बांहों में ही भींचे रहती हैं, ता-उमर.

जिंदगी में लेने आता, एक बार पर-
बैठती हूँ रोज, 'बस्तीवी' सज संवर!

Views: 670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 26, 2012 at 8:56pm

भाई वीनस जी, सादर! आप रचना को प्रणाम करें और और मै आपको प्रणाम :)

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 26, 2012 at 8:54pm

आदरनीया सीमा जी, जी जरुर मेहनत करेंगे शिल्प एवं कहन दोनों पर, आपका आशीर्वाद मिलता रहे बस.

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 1:01pm

शख्शियत में नये, बदलता हूँ धीरे से,
नये चेहरे मिले और, नये से राही जिधर.

नयापन आज है कल यही पुराना हो जायेगा
नए की तलाश में कवि का मन आकुल होता है  .....

अज्ञेय कहते हैं - जो बिम्ब पुराने हो जाएँ वह उसी तरह घिस जाते हैं जैसे पुराने पीतल के बर्तन काले पड़ जाते हैं

आपकी नवीनता की तड़प आपकी श्रेष्ठता को दर्शाती है
सादर

रचना को प्रणाम है

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 22, 2012 at 4:52pm

माननीय महिमा जी, सादर धन्यवाद.

Comment by MAHIMA SHREE on March 22, 2012 at 11:19am
शख्शियत में नये, बदलता हूँ धीरे से,
नये चेहरे मिले और, नये से राही जिधर...

राकेश जी
नमस्कार....क्या बात है....सही कहा...आपने जिंदगी धीरे -२ हमे अपने धूप छावं में बदल रही ..होती है...
बधाई ..आपको
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 19, 2012 at 10:54am

आदरणीय रवीन्द्र जी एवं शशि जी, सदर नमस्कार. जी वजह फरमाया शाही जी ने, मगर 'worker and workaholic' मे अंतर होना ही चाहिए. मेरा ये मानना है. धन्यवाद.

Comment by Dr. Shashibhushan on March 18, 2012 at 10:16pm

मान्यवर राकेश जी,
सादर !
अंतर्मन के भावनाओं की सुन्दर शब्द-सज्जा !
बहुत बढ़िया !

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 18, 2012 at 2:43pm

बहुत अच्छी कविता है,राकेश जी.

द्वार-मंदिर मिले न मिले, पर चाहतें, बांहों में ही भींचे रहती हैं, ता-उमर. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 18, 2012 at 12:06am

भाई आनंद जी एवं भाई त्रिपाठी जी, सादर धन्यवाद.
श्री विन्ध्येश्वरि जी: आप तो 'Gondavi' साहब के जिले से निकले, उन्हे मैं अपना द्रोणाचार्य मानता हूँ.
जहाँ तक इस फोरम से सीखा है, मैने ग़ज़ल लिखने का प्रयत्न किया है, 2122/2122/2212/ की तर्ज पर. अब गुरु जनो से आग्रह है की वे बतावें की कितना सफल रहा हूँ. धन्यवाद.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 17, 2012 at 9:23pm
त्रिपाठी जी रचना तो बहुत जमीं मगर ये किस विधा में रची गयी है समझने में मुझे दिक्कत है।रचना के नाम पर पूरे गोंडा की तरफ से बस्तीवी साहब को जोरदार बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
2 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
12 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
13 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे प्रयास को मान देने के लिए। सादर"
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।"
17 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"छंद प्रवाह के लिए बहुत बढ़िया सुझाव।"
19 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"मानव के अत्यधिक उपभोगवादी रवैये के चलते संसाधनों के बेहिसाब दोहन ने जलवायु असंतुलन की भीषण स्थिति…"
45 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" जलवायु असंतुलन के दोषी हम सभी हैं... बढ़ते सीओटू लेवल, ओजोन परत में छेद, जंगलों का कटान,…"
51 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय को सार्थक करतीब हुत बढ़िया दोहावली की प्रस्तुति। इस…"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service