For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आल्हा - एक प्रयास

दुनिया यही सिखाती हरदम, सीख सके तो तू भी सीख।  

आदर्शों पर चलकर हासिल, कुछ ना होगा, मांगो भीख।

 

तीखे कर दांतों को अपने, मत रह सहमा औ मासूम।

जंगल का कानून यही है, गीदड़ बन जा पी खा झूम।

 

उनकी तो किस्मत है मरना, हिरण बिचारे सब अंजान।  

कदम कदम पे गहरे गड्ढे, गिर गिर गंवा रहे हैं जान।

 

शेर भेष धर गीदड़ घूमे, जंगल जंगल मचती खोज।

भोले खरगोशों की शामत, सिरा रहे वे बन कर भोज।  

 

हुई दुपहरी, अब तो जागो, कुंभकर्ण ना बन नादान।  

कौंवे शातिर सभी इधर के, ले कर उड़ जाएँगे कान।

 

कितने पूत शहीद हुये पर, मिली अजादी फूटे भाग।

वारिस ही अब भून चबाते, सपने स्वाद भरे हैं साग।

 

देश बना कर जलती भट्टी, सबने चढ़ा रखी है दाल।

हाड़ लहू के देगच में भी, अब तो आ ही जाय उबाल।

 

चीखेँ चलो चलें सब दमभर, ऐसा भीषण कर दें शोर।

छोड़ लंगोटी को भी अपने, भाग चलें सब हलकट चोर।

_____________________________________________

- संजय मिश्रा 'हबीब'

 

Views: 783

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 7:32pm

हार्दिक आभार स्वीकारें आदरणीय सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी...

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 7, 2012 at 6:41pm

हुई दुपहरी, अब तो जागो, कुंभकर्ण ना बन नादान।  

कौंवे शातिर सभी इधर के, ले कर उड़ जाएँगे कान।

 प्रिय मिश्र हबीब जी ..बहतु आनंद आया ढोल की थाप और इस जोशीले आल्हा में ..गजब का व्यंग्य और सच ...काश भ्रष्टाचारियों के कान कौए ले जायं ..बधाई हो 

भ्रमर ५ 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 

कितने पूत शहीद हुये पर, मिली अजादी फूटे भाग।

वारिस ही अब भून चबाते, सपने स्वाद भरे हैं साग।

 

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 1, 2012 at 6:48pm

आदरणीय सौरभ भईया, आपके शब्द सकारात्मक सृजन की प्रेरणा होते हैं.... अनगढ़ प्रयास पर आपकी सराहना पाकर अनुज प्रफुल्लित हो गया है... स्नेह और मार्गदर्शन  बनाए रखें गुरुवर.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2012 at 10:03am

इस नगीने से मैं अबतक दूर रहा इसका खेद है. प्रवहमान पंक्तियों और सन्निहित भावों से यह आल्हा संग्रहणीय बन गया है. हालाँकि पारंपरिक आल्हा को यह उसतरह इंगित नहीं करता हैं जहाँ अतिशयोक्ति या अतिरेक को अतिविशिष्ट महत्ता मिली होती है. परन्तु, उन संदर्भों को भी प्रस्तुत छंद उदारता से छूता चलता है. यों, ये अलग बात है, कि जिसे अतिरेक के रूप में कहने की कोशिश हुई है वह संदर्भ आज की कटु सच्चाई बन कर विद्यमान है. जैसे, कौंवे शातिर सभी इधर के, ले कर उड़ जाएँगे कान  

इस बंद के लिये विशेष बधाई स्वीकार करें -

देश बना कर जलती भट्टी, सबने चढ़ा रखी है दाल।

हाड़ लहू के देगच में भी, अब तो आ ही जाय उबाल ॥

 

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on May 31, 2012 at 8:52am

आ भाई उमाशंकर मिश्र जी सादर आभार स्वीकारें.

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on May 31, 2012 at 8:51am

आ भाई आशीष जी... आभार स्वीकारें.

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on May 31, 2012 at 8:50am

आदरणीय भाई भ्रमर जी सादर स्वागत आपका....

प्रयास को सराहने हेतु सादर आभार स्वीकारें.  

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on May 31, 2012 at 8:48am

आदरणीय अविनाश भईया आपका अलग अंदाज उत्साहित करता है... ||सही गुस्सा...क्या हल?|| आल्हा के अंतिम पद में इसी हल की और संकेत करने का प्रयास किया है... 

सीखने.... हे भगवान!!! क्या कह दिया आपने...??

आप रायपुर जरुर पधारें.... आपकी संगत/आपका स्वागत करना मेरा सौभाज्ञ होगा... सादर। 

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on May 31, 2012 at 8:40am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, प्रयास को सराहने के लिए सादर आभार.

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on May 31, 2012 at 8:39am

आपको यह प्रयास रुचा...सादर आभार भाई योगी सारस्वत जी 

हाँ आपके द्वारा लिखित 'गजल' शब्द पर थोड़ा अटक जरुर गया :))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service