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जीवन एक किताब है,तीन प्रमुख अध्याय।
बचपन यौवन वृद्धपन,कहैं सुकवि समुझाय॥

बचपन जीवन भूमिका,यौवन ललित निबंध।
वृद्धापन सारांश है,उत्तम काव्य प्रबंध॥

भाषा रूपी ज्ञान हो,रस चरित्र व्यवहार।
कर्म रीति से युक्त हो,अलंकार गुण भार॥

अनुशासन का व्याकरण,पद लालित्य अनूप।
छंद बद्ध हर पल रहे,कथ्य शास्त्र अनुरूप॥

जीवन पुस्तक में नहीं,यदि बातें उपरोक्त।
श्याम वर्ण पुस्तक लगे,जीवन जैसे शोक॥

अल्ट्रामार्डन हो गये,काव्य और सब लोग।
हर बंधन को तोड़ कर,करते नव्य प्रयोग॥

प्रगतिवाद के नाम पर,शब्द धरे बस जोड़।
भाग रहा जीवन यहां,गर्दन प्रेम मरोड़॥

आप बताओ क्या सही,अनुशासन का भंग।
जीवन पुस्तक में रखो,मर्यादा का ढंग॥

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Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2012 at 10:14pm

विध्येश्वरी भाई, आपकी सतत अभ्यास यात्रा बनी रहे.  दोहे अच्छे बन पड़े हैं.

हृदय से बधाई स्वीकार करें.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 6:48pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी रचना की सराहना हेतु सादर आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 6:46pm
आदरणीय संदीप भाई जी रचना की सराहना हेतु सादर आभार।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:29am

जीवन कालांश पर सुन्दर दोहे, बधाई भाई शिर विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 9:25am

सुन्दर दोहावली है बधाई स्वीकार कीजिये भाई विन्धेश्वरी जी 

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