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माँ को कैसे दूं श्रद्धांजली ,

माँ तुझे सलाम

 

 

वो चेहरा जो
        शक्ति था मेरी ,
वो आवाज़ जो
      थी भरती ऊर्जा मुझमें ,
वो ऊँगली जो
     बढ़ी थी थाम आगे मैं ,

वो कदम जो
    साथ रहते थे हरदम,
वो आँखें जो
   दिखाती रोशनी मुझको ,
वो चेहरा
   ख़ुशी में मेरी हँसता था ,
वो चेहरा
   दुखों में मेरे रोता था ,
वो आवाज़
   सही बातें  ही बतलाती ,
वो आवाज़
   गलत करने पर धमकाती ,

वो ऊँगली
   बढाती कर्तव्य-पथ पर ,
वो ऊँगली
  भटकने से थी बचाती ,
वो कदम
   निष्कंटक राह बनाते ,
वो कदम
   साथ मेरे बढ़ते जाते ,
वो आँखें
   सदा थी नेह बरसाती ,
वो आँखें
   सदा हित ही मेरा चाहती ,
मेरे जीवन के हर पहलू
   संवारें जिसने बढ़ चढ़कर ,
चुनौती झेलने का गुर
     सिखाया उससे खुद लड़कर ,
संभलना जीवन में हरदम
     उन्होंने मुझको सिखलाया ,
सभी के काम तुम आना
    मदद कर खुद था दिखलाया ,

वो मेरे सुख थे जो सारे
   सभी से नाता गया है छूट ,
वो मेरी बगिया की माली
   जननी गयी हैं मुझसे रूठ ,
गुणों की खान माँ को मैं
    भला कैसे दूं श्रद्धांजली ,
ह्रदय की वेदना में बंध
    कलम आगे न अब चली .
           शालिनी कौशिक
                [कौशल ]

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Comment

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Comment by shalini kaushik on November 21, 2012 at 1:31am

aabhar dr.soorya bali ji ,lakshman ji ,v ashok ji.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 20, 2012 at 11:00am

शलिनी जी माँ को समर्पित सुंदर रचना । मान को इससे बेहतर श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है।

बहुत बढ़िया

बधाई स्वीकार करें  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 20, 2012 at 10:57am
माँ को तो सदैव ही दिल से श्रद्धांजली दी जाती है
मन रोता है, नयानों से अश्रु छलकते है,
कपोलो पर ढलकते रहते है
मुंह से निकलती आह है- हे माँ तुझे सलाम ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on November 20, 2012 at 6:04am

माँ तुझे सलाम.

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