For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Shalini kaushik's Blog (23)

क़त्ल करने मुझे देखो , कब्र में घुस के बैठे हैं .

नहीं वे जानते मुझको, दुश्मनी करके बैठे हैं ,

मेरे कुछ मिलने वाले भी, उन्हीं से मिलके बैठे हैं ,



समझकर वे मुझे कायर, बहुत खुश हो रहे नादाँ

क़त्ल करने मुझे देखो , कब्र में घुस के बैठे हैं .



गिला वे कर रहे आकर , हमारे गुमसुम रहने का ,

गुलूबंद को जो कानों से , लपेटे अपने बैठे हैं .



हमें गुस्ताख़ कहते हैं , गुनाह ऊँगली पे गिनवाएं ,

सवेरे से जो रातों तक , गालियाँ दे के बैठे हैं .



नतीजा उनसे मिलने का , आज है सामने आया ,

पड़े हम…

Continue

Added by shalini kaushik on January 10, 2015 at 11:00pm — 7 Comments

बाल मज़दूरी -हमारी मज़बूरी .

”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,

उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”

........................................................................

”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,

हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”

.......................................................................

”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,

दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”…

Continue

Added by shalini kaushik on June 15, 2014 at 11:30pm — 3 Comments

पर्दे शर्म के सारे तार-तार हो गए हैं .

बेख़ौफ़ हो गए हैं ,बेदर्द हो गए हैं ,

हवस के जूनून में मदहोश हो गए हैं .

चल निकले अपना चैनल ,हिट हो ले वेबसाईट ,

अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .

पीते हैं मेल करके ,देखें ब्लू हैं फ़िल्में ,

नारी का जिस्म दारू के अब दौर हो गए हैं .

गम करते हों गलत ये ,चाहे मनाये जलसे ,

दर्द-ओ-ख़ुशी औरतों के सिर ही हो गए हैं .

उतरें हैं रैम्प पर ये बेधड़क खोल तन को…

Continue

Added by shalini kaushik on May 11, 2013 at 12:30am — 11 Comments

हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत ,

 

  Thai Massage

फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,

औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .



करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत  के साथ ,

माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .

 

मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,

चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .

 

फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,

फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .



हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत…

Continue

Added by shalini kaushik on April 17, 2013 at 1:36am — 6 Comments

कौन मजबूत? कौन कमजोर ?

इम्तिहान

एक दौर

चलता है जीवन भर !

सफलता

पाता है कोई

कभी थम जाये सफ़र !

कमजोर

का साथ

देना सीखा,

ज़रुरत

मदद की

उसे ही रहती .

सदा साथ

नर का

देती रही ,

साया बन

संग उसके

खड़ी है रही ,

परीक्षा की घडी

आये पुरुष की

नारी बन सहायक

सफलता दिलाती…

Continue

Added by shalini kaushik on April 14, 2013 at 8:30pm — 17 Comments

झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,

 

 Pakistani Shiite Muslim women. Credit: Getty Images

 

झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,

दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .

अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,

तडपाई  दिल्लगी से तेजाब फैंककर .

ज़ागीर है ये मेरी, मेरा ही दिल जलाये ,

ठुकराई मिल्कियत से तेजाब फैंककर .

मेरी नहीं बनेगी फिर क्यूं बने किसी की,

सिखलाई बेवफाई तेजाब फैंककर .

चेहरा है चाँद तेरा ले दाग भी उसी से ,

दिलवाई निकाई ही तेजाब…

Continue

Added by shalini kaushik on April 3, 2013 at 4:15pm — 9 Comments

फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .

फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,

पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .

नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,

हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .

फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,

इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .

अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,

इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .

फरेब ओढ़…

Continue

Added by shalini kaushik on January 25, 2013 at 12:00am — 3 Comments

शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .-2013

 

अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को ,

अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को .

 

अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर  आये …

Continue

Added by shalini kaushik on December 30, 2012 at 8:33pm — 3 Comments

जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

   

बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,

जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

 

न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,

फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है .…

Continue

Added by shalini kaushik on November 25, 2012 at 3:57pm — 8 Comments

माँ को कैसे दूं श्रद्धांजली ,

माँ तुझे सलाम

 

 

वो चेहरा जो

        शक्ति था मेरी ,

वो आवाज़ जो

      थी…

Continue

Added by shalini kaushik on November 19, 2012 at 12:31am — 4 Comments

तायफा बन गयी है देखो नेतागर्दी अब यहाँ .

 

तानेज़नी पुरजोर है सियासत  की  गलियों में यहाँ ,

ताना -रीरी कर रहे हैं  सियासतदां  बैठे यहाँ .
 
इख़्तियार मिला इन्हें राज़ करें मुल्क पर ,
ये सदन में बैठकर कर रहे सियाहत ही यहाँ…
Continue

Added by shalini kaushik on October 28, 2012 at 2:56pm — 1 Comment

अफ़सोस ''शालिनी''को खत्म न ये हो पाते हैं .

 

 

खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,

मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .
 
तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .…
Continue

Added by shalini kaushik on October 25, 2012 at 8:30pm — 3 Comments

जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,

झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,

ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .

बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,

ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं…

Continue

Added by shalini kaushik on October 21, 2012 at 1:00pm — 4 Comments

लगेंगी सदियाँ पाने में ......

लगेंगी सदियाँ पाने में ......

न खोना प्यार अपनों का लगेंगी सदियाँ पाने में ,
न खोना तू यकीं इनका लगेंगी सदियाँ पाने में .
 
नहीं समझेगा तू कीमत अभी बेहाल है मन में ,
अहमियत जब तू समझेगा लगेंगी सदियाँ पाने में…
Continue

Added by shalini kaushik on October 5, 2012 at 11:56pm — 4 Comments

कृतज्ञ दुनिया इस दिन की .

एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की,

दोनों ने ही अलख जगाई देश की खातिर मरने के .
जेल में जाते बापू बढ़कर सहते मार अहिंसा में ,
आखिर में आवाज़ बुलंद की कुछ करने या मरने की .
लाल बहादुर सेनानी थे गाँधी जी से थे प्रेरित ,
देश प्रेम में छोड़ के शिक्षा थामी डोर आज़ादी की .
सत्य अहिंसा की लाठी ले फिरंगियों को भगा दिया ,
बापू ने अपनी लाठी से नीव जमाई भारत की .
आज़ादी के लिए…
Continue

Added by shalini kaushik on October 2, 2012 at 2:39pm — 4 Comments

औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती .

औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती .

शबनम का क़तरा थी मासूम अबलखा ,

वहशी दरिन्दे के वो चंगुल में फंस गयी .

चाह थी मन में छू लूं आकाश मैं उड़कर ,

कट गए पर पिंजरे में उलझकर रह गयी .

थी अज़ीज़ सभी को घर की थी लाड़ली ,

अब्ज़ा की तरह पाला था माँ-बाप ने मिलकर .

आई थी आंधी समझ लिया तन-परवर उन्होंने ,

तहक़ीक में तबाह्कुन वो निकल गयी .

महफूज़ समझते थे वे अजीज़ी का फ़रदा ,

तवज्जह नहीं देते थे तजवीज़ बड़ों की .

जो कह गयी जा-ब-जा हमसे ये तवातुर…

Continue

Added by shalini kaushik on September 13, 2012 at 1:21am — 2 Comments

माननीय शिक्षकों को शालिनी का प्रणाम

Successfu...

अर्पण करते स्व-जीवन शिक्षा की अलख जगाने में ,

रत रहते प्रतिपल-प्रतिदिन  शिक्षा की राह बनाने में .

Teacher : teacher with a group of high school students in classroom

आओ मिलकर करें स्मरण नमन करें इनको मिलकर ,

जिनका जीवन हुआ सहायक हमको सफल बनाने में…

Continue

Added by shalini kaushik on September 3, 2012 at 1:58pm — 5 Comments

पर ये तन्हाई ही हमें रहना सिखाती है.

ये जिंदगी तन्हाई को साथ लाती है,

हमें कुछ करने के काबिल बनाती है.

सच है मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है,

पर ये तन्हाई ही हमें रहना सिखाती है.



यूँ तो तन्हाई भरे शबो-रोज़,

वीरान कर देते हैं जिंदगी.

उमरे-रफ्ता में ये तन्हाई ही ,

अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है.



मौतबर शख्स हमें मिलता नहीं,

ये यकीं हर किसी पर होता नहीं.

ये तन्हाई की ही सलाहियत है,

जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.



शालिनी कौशिक…



Continue

Added by shalini kaushik on July 17, 2011 at 2:30pm — No Comments

पीछे देखोगे साथ में भीड़ जुट जाएगी.

है अगर चाहत तुम्हारी सेवा परोपकार की,

तो जिंदगी समझो तुम्हारी पुरसुकूं पायेगी.

दुनिया में किसी को मिले न मिले

दुनिआवी झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी.



हैं फंसे आकर अनेकों इस नरक के जाल में,

मुक्ति चाह जब उनकी आत्मा तरपाएगी .

तब उन्हें देख तुमको हँसते मुस्कुराते हुए

जिंदगी जीने की नयी राह एक मिल जाएगी.



मोह अज्ञानवश फिर रहे भटक रहे,

मौत के आगोश में गर जिंदगी जाएगी.

अंत समय ज्ञान पाने की ललक को देखना

इच्छा अधूरी है ये मन में दबी रह… Continue

Added by shalini kaushik on July 2, 2011 at 12:43am — 2 Comments

जीवन की सच्चाई से हम बने रहे अंजान

नैनों में अश्रु बन छाया,होठों पर मुस्कान,
जीवन की सच्चाई से हम बने रहे अंजान

जीवन में सब पाने की जब अपने मन में ठानी,
तभी सामने आ गयी जीवन की बेईमानी .

देने को हमें कुछ न लाया ये जीवन महान,
जीवन की सच्चाई से हम बने रहे अंजान,

हमने जब कुछ भी है चाहा हमें नहीं मिल पाया,
जो पाया था इस जीवन में उसे भी हमने गंवाया,

फिर क्यों हालत देख के अपनी होते हैं हैरान,
जीवन की सच्चाई से हम बने रहे अंजान.
शालिनी कौशिक

Added by shalini kaushik on June 8, 2011 at 12:14am — 1 Comment

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service