नहीं वे जानते मुझको, दुश्मनी करके बैठे हैं ,
मेरे कुछ मिलने वाले भी, उन्हीं से मिलके बैठे हैं ,
समझकर वे मुझे कायर, बहुत खुश हो रहे नादाँ
क़त्ल करने मुझे देखो , कब्र में घुस के बैठे हैं .
गिला वे कर रहे आकर , हमारे गुमसुम रहने का ,
गुलूबंद को जो कानों से , लपेटे अपने बैठे हैं .
हमें गुस्ताख़ कहते हैं , गुनाह ऊँगली पे गिनवाएं ,
सवेरे से जो रातों तक , गालियाँ दे के बैठे हैं .
नतीजा उनसे मिलने का , आज है सामने आया ,
पड़े हम…
Added by shalini kaushik on January 10, 2015 at 11:00pm — 7 Comments
”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,
उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”
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”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,
हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”
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”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,
दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”…
Added by shalini kaushik on June 15, 2014 at 11:30pm — 3 Comments
बेख़ौफ़ हो गए हैं ,बेदर्द हो गए हैं ,
हवस के जूनून में मदहोश हो गए हैं .
चल निकले अपना चैनल ,हिट हो ले वेबसाईट ,
अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .
पीते हैं मेल करके ,देखें ब्लू हैं फ़िल्में ,
नारी का जिस्म दारू के अब दौर हो गए हैं .
गम करते हों गलत ये ,चाहे मनाये जलसे ,
दर्द-ओ-ख़ुशी औरतों के सिर ही हो गए हैं .
उतरें हैं रैम्प पर ये बेधड़क खोल तन को…
ContinueAdded by shalini kaushik on May 11, 2013 at 12:30am — 11 Comments
फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .
करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत के साथ ,
माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .
मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,
चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .
फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,
फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .
हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत…
Added by shalini kaushik on April 17, 2013 at 1:36am — 6 Comments
एक दौर
चलता है जीवन भर !
सफलता
पाता है कोई
कभी थम जाये सफ़र !
कमजोर
का साथ
देना सीखा,
ज़रुरत
मदद की
उसे ही रहती .
सदा साथ
नर का
देती रही ,
साया बन
संग उसके
खड़ी है रही ,
परीक्षा की घडी
आये पुरुष की
नारी बन सहायक
सफलता दिलाती…
ContinueAdded by shalini kaushik on April 14, 2013 at 8:30pm — 17 Comments
झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .
अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,
तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर .
ज़ागीर है ये मेरी, मेरा ही दिल जलाये ,
ठुकराई मिल्कियत से तेजाब फैंककर .
मेरी नहीं बनेगी फिर क्यूं बने किसी की,
सिखलाई बेवफाई तेजाब फैंककर .
चेहरा है चाँद तेरा ले दाग भी उसी से ,
दिलवाई निकाई ही तेजाब…
Added by shalini kaushik on April 3, 2013 at 4:15pm — 9 Comments
फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,
पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .
नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,
हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .
फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,
इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .
अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,
इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .
फरेब ओढ़…
ContinueAdded by shalini kaushik on January 25, 2013 at 12:00am — 3 Comments
अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को ,
अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को .
अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर आये …
ContinueAdded by shalini kaushik on December 30, 2012 at 8:33pm — 3 Comments
बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .…
Added by shalini kaushik on November 25, 2012 at 3:57pm — 8 Comments
Added by shalini kaushik on November 19, 2012 at 12:31am — 4 Comments
तानेज़नी पुरजोर है सियासत की गलियों में यहाँ ,
Added by shalini kaushik on October 28, 2012 at 2:56pm — 1 Comment
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
Added by shalini kaushik on October 25, 2012 at 8:30pm — 3 Comments
झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .
बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं…
Added by shalini kaushik on October 21, 2012 at 1:00pm — 4 Comments
लगेंगी सदियाँ पाने में ......
Added by shalini kaushik on October 5, 2012 at 11:56pm — 4 Comments
एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की,
Added by shalini kaushik on October 2, 2012 at 2:39pm — 4 Comments
औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती .
शबनम का क़तरा थी मासूम अबलखा ,
वहशी दरिन्दे के वो चंगुल में फंस गयी .
चाह थी मन में छू लूं आकाश मैं उड़कर ,
कट गए पर पिंजरे में उलझकर रह गयी .
थी अज़ीज़ सभी को घर की थी लाड़ली ,
अब्ज़ा की तरह पाला था माँ-बाप ने मिलकर .
आई थी आंधी समझ लिया तन-परवर उन्होंने ,
तहक़ीक में तबाह्कुन वो निकल गयी .
महफूज़ समझते थे वे अजीज़ी का फ़रदा ,
तवज्जह नहीं देते थे तजवीज़ बड़ों की .
जो कह गयी जा-ब-जा हमसे ये तवातुर…
Added by shalini kaushik on September 13, 2012 at 1:21am — 2 Comments
अर्पण करते स्व-जीवन शिक्षा की अलख जगाने में ,
रत रहते प्रतिपल-प्रतिदिन शिक्षा की राह बनाने में .
आओ मिलकर करें स्मरण नमन करें इनको मिलकर ,
जिनका जीवन हुआ सहायक हमको सफल बनाने में…
Added by shalini kaushik on September 3, 2012 at 1:58pm — 5 Comments
ये जिंदगी तन्हाई को साथ लाती है,
हमें कुछ करने के काबिल बनाती है.
सच है मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है,
पर ये तन्हाई ही हमें रहना सिखाती है.
यूँ तो तन्हाई भरे शबो-रोज़,
वीरान कर देते हैं जिंदगी.
उमरे-रफ्ता में ये तन्हाई ही ,
अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है.
मौतबर शख्स हमें मिलता नहीं,
ये यकीं हर किसी पर होता नहीं.
ये तन्हाई की ही सलाहियत है,
जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.
शालिनी कौशिक…
Added by shalini kaushik on July 17, 2011 at 2:30pm — No Comments
Added by shalini kaushik on July 2, 2011 at 12:43am — 2 Comments
Added by shalini kaushik on June 8, 2011 at 12:14am — 1 Comment
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