फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,
पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .
नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,
हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .
फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,
इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .
अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,
इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .
फरेब ओढ़ बैठा नाजिम ही इस ज़मीं पर ,
फुलवारी भी इतबार के काबिल नहीं रही .
लाये थे इन्कलाब कर गणतंत्र यहाँ पर ,
हाथों में जनता के कभी सत्ता नहीं रही .
वोटों में बैठे आंक रहे आदमी को वे ,
खुदगर्जी में कुछ करने की हिम्मत नहीं रही .
इल्ज़ाम लगाते रहे ये हुक्मरान पर ,
अवाम अपने फ़र्ज़ की खाहाँ नहीं रही .
फसाद को उकसा रहे हैं रहनुमा यहाँ ,
ये थामे मेरी डोर अब हसरत नहीं रही .
खुशहाली ,प्यार,अमन बांटा फहर-फहर कर ,
भारत की नस्लों को ये ज़रुरत नहीं रही .
गणतंत्र फ़साना बना हे ! हिन्दवासियों ,
जलसे से जुदा हाकिमी कीमत नहीं रही .
तिरंगा कहे ''शालिनी'' से फफक-फफक कर ,
फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .
शब्द अर्थ -फ़िरदौस-स्वर्ग ,पुरवाई-पूरब की ओर से आने वाली हवा ,इलहाम -देववाणी ,ईश्वरीय प्रेरणा ,रुनुमाई-मुहं दिखाई ,इन्कलाब -क्रांति ,खाहाँ -चाहने वाला ,मिल्लत-मेलजोल ,हाकिमी -शासन सम्बन्धी ,फ़साना -कल्पित साहित्यिक रचना ,इतबार-विश्वास ,नाजिम-प्रबंधकर्ता ,मंत्री ,फुलवारी-बाल बच्चे ,
शालिनी कौशिक[कौशल]
Comment
बहुत खूब रचना शालिनी जी ...गणेश जी की बातों पर थोड़ा गंभीरता से गौर करिये ..
भावों को बढ़िया उकेरा है , ग़ज़ल की बातें और ग़ज़ल की कक्षा समूह को यदि अध्ययन करें तो सच मानिये , आपको बहुत फायदा होगा । बधाई इस अभिव्यक्ति पर ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online