झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .
अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,
तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर .
ज़ागीर है ये मेरी, मेरा ही दिल जलाये ,
ठुकराई मिल्कियत से तेजाब फैंककर .
मेरी नहीं बनेगी फिर क्यूं बने किसी की,
सिखलाई बेवफाई तेजाब फैंककर .
चेहरा है चाँद तेरा ले दाग भी उसी से ,
दिलवाई निकाई ही तेजाब फैंककर .
देखा है प्यार मेरा अब नफरतों को देखो ,
झलकाई मर्दानगी तेजाब फैंककर .
शैतान का दिल टूटे तो आये क़यामत ,
निपटाई हैवानगी तेजाब फैंककर .
कायरता है पुरुष की समझे बहादुरी है ,
छलकाई बेबसी ही तेजाब फैंककर .
औरत न चीज़ कोई डर जाएगी न ऐसे ,
घबराई जवानी पर तेजाब फैंककर .
उसकी भी हसरतें हैं ,उसमे भी दिलावरी ,
धमकाई बेसुधी ही तेजाब फैंककर .
चट्टान की मानिंद ही है रु-ब-रु-वो तेरे ,
गरमाई ''शालिनी'' भी तेजाब फैंककर .
शालिनी कौशिक
[कौशल]
Comment
thanks ram shiromani i .
सुन्दर भावों की रचना के लिए बधाई शालिनी कौशिक जी
आदरेया शालिनी जी एक कटु और बुरा सत्य जो आज के समाज में व्याप्त है, समाज की खोखली कुरीतियों के विरुद्ध तेजाब भी कम है. सजा तो ऐसी हो न जिया जाए और न मरा जाए. खैर आपकी लेखनी में आक्रोश को देखकर बहुत ही अच्छा लगा. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
सुन्दर भावों की रचना के लिए बधाई शालिनी कौशिक जी
भाव हमेशा की तरह शानदार हैं हार्दिक बधाई शालिनी जी
बहुत अच्छे भाव पिरोये हैं आपने .................सादर बधाई आपको
गुरुजनों के कहे को समझ उसमे अमल करेंगे तो प्रयास और भी सुखद हो जाएगा
सादर
आदरणीया शालिनी कौशिक जी सादर तेज़ाब को हथियार के रुप में इस्तेमाल पर आपने बहुत खूब लिखा है. हमारी सरकार को भी क्या रहम आया इन दरिंदों पर की गैर जमानती से इसे जमानती जुर्म में शामिल कर लिया है.सुन्दर रचना. गजल के विधान को समझकर लिखें तब एक उम्दा गजल तैयार होने को बेताब नजर आ रही है. सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें.
आदरणीया शालिनी कौशिक’कौशल’ जी, मुझे गजल तो पसंद है पर कभी लिखा नहीं। आप द्वारा प्रस्तुत गजल में भाव, अंगार, दर्द तथा कुछ करने का हौसला तो बुलन्द है किन्तु जैसा कि गुरूवर जी ने कहा काव्यगत विधान अवश्य देखें। सुन्दर। सादर
एक अच्छी भाव दशा और सुदृढ कहन अनगढ़ विधा और असहज काव्य-साधन के कारण दोयम भर हो कर रह गयी है.
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