एक दौर
चलता है जीवन भर !
सफलता
पाता है कोई
कभी थम जाये सफ़र !
कमजोर
का साथ
देना सीखा,
ज़रुरत
मदद की
उसे ही रहती .
सदा साथ
नर का
देती रही ,
साया बन
संग उसके
खड़ी है रही ,
परीक्षा की घडी
आये पुरुष की
नारी बन सहायक
सफलता दिलाती ,
मगर नारी
चले मंजिल की ओर
पीछे उसके दूर दूर तक
वीराना रहे ,
और अकेली
वह इम्तिहान में
सफलता पाती !
फिर कौन मजबूत?
कौन कमजोर ?
दुनिया क्यों समझ न पाती ?
(मौलिक व् अप्रकाशित)
शालिनी कौशिक
Comment
साया बन
संग उसके
खड़ी है रही ,
परीक्षा की घडी
आये पुरुष की
नारी बन सहायक
सफलता दिलाती ,
मगर नारी
चले मंजिल की ओर
पीछे उसके दूर दूर तक
वीराना रहे ,
और अकेली
सुन्दर शब्द शालिनी जी
keval prasad ji hardik dhanyawad
pradeep ji ,lakshman ji ,ram ji aap sabhi ka hardik dhanyawad
@brijesh ji .abhi seekh rahi hoon aapke sujhav dhayan me rakhoongi .aabhar margdarshan ke liye .
आदरणीया शालिनी जी सादर, नारी को संबल देती रचना पर बधाई. मगर नारी को ताकतवर दिखाने के चक्कर में नर से क्यों बैर ले बैठी हैं? भाई संदीप जी के कहे से मैं भी सहमत हूँ और मुझे लगता है मिथ्या बातें रचना की अच्छी बातों का भी वजन कम कर देती हैं.मुझे लगता है इसपर ध्यान देने की आवश्यकता है.
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