फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .
करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत के साथ ,
माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .
मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,
चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .
फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,
फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .
हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत ,
नादानी करें औरतें ,देती हमें दुत्कार .
माँ का करूँ तो बीवी को बर्दाश्त नहीं है ,
मिलती हैं लानतें अगर बेगम से करूँ प्यार .
बन्दर बना हूँ ''शालिनी ''इन बिल्लियों के बीच ,
फ़रजानगी फंसने में नहीं ,यूँ होता हूँ फरार .
मौलिक व् अप्रकाशित
शालिनी कौशिक
[कौशल]
शब्दार्थ :फरमाबरदार -आज्ञाकारी ,बेजार-नाराज ,मक़बूलियत -कबूल किये जाने का भाव ,मनुहार-खुशामद,मनसबी-औह्देदारी ,फरहत-ख़ुशी ,फैयाजी-उदारता मकसूम -बंटा हुआ .फर्ज़ंगी -बुद्धिमानी .
Comment
आपकी रचना पढ़कर मजा आ गया। बहुत बधाई आपको इस बेहतरीन रचना पर।
bahut hi rochak prastuti .hardik aabhar
@RAM SHIROMANI JI AUR KEWAL PRASAD JI HARDIK DHANYAWAD.
आदरणीया शालिनी कौशिक जी, ’फैयाज़ी मेरे खून में, फरहत है फैमिली, फरमाइशें पूरी करूँ, ये फिर भी हैं बेजार’ अतिसुन्दर । बधाई स्वीकारें। सादर,
सुन्दर रचना!!!!हार्दिक बधाई
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