बेख़ौफ़ हो गए हैं ,बेदर्द हो गए हैं ,
हवस के जूनून में मदहोश हो गए हैं .
चल निकले अपना चैनल ,हिट हो ले वेबसाईट ,
अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .
पीते हैं मेल करके ,देखें ब्लू हैं फ़िल्में ,
नारी का जिस्म दारू के अब दौर हो गए हैं .
गम करते हों गलत ये ,चाहे मनाये जलसे ,
दर्द-ओ-ख़ुशी औरतों के सिर ही हो गए हैं .
उतरें हैं रैम्प पर ये बेधड़क खोल तन को ,
कुकर्म इनके मासूमों के गले हो गए हैं .
आती न शरम इनको मर्दानगी पे अपनी ,
रखवाले की जगह गारतगर हो गए हैं .
आये कभी है पूनम ,छाये कभी सनी है ,
इनके शरीर नोटों की अब रेल हो गए हैं .
कानून की नरमी ही आज़ादी बनी इनकी ,
दरिंदगी को खुले ये माहौल हो गए हैं .
मासूम को तडपालो ,विरोध को दबा लो ,
जो जी में आये करने में ये सफल हो गए हैं .
औरत हो या मरद हो ,झुठला न सके इसको ,
दोनों ही ऐसे जुर्मों की ज़मीन हो गए हैं .
इंसानियत है फिरती अब अपना मुहं छिपाकर ,
परदे शरम के सारे तार-तार हो गए हैं .
''शालिनी'' क्या बताये अंजाम वहशतों का ,
बेबस हों रहनुमा भी अब मौन हो गए हैं .
[मौलिक व् अप्रकाशित ]
शालिनी कौशिक
Comment
THANKS TO DINESH JI ,KEVAL JI,ASHOK JI .
परिस्थितियों की पीड़ा को दर्शाती सुन्दर रचना आदरणीया शालिनी जी. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आ0 शालिनी जी, सुप्रभात! ‘औरत हो या मरद हो, झुठला न सके इसको!
दोनों ही ऐसे जुर्मों की ज़मीन हो गए हैं।
इंसानियत है फिरती अब अपना मुहं छिपाकर,
परदे शरम के सारे तार.तार हो गए हैं।‘...... बहुत ही सुन्दर...कटु सत्य!!! बधाई स्वीकारें, सादर,
वेदना के साथ बहुत आक्रोश है, आपकी कविता में. ये ज़ज्बा और अभिव्यक्ति भी ज़रूरी है.
thanks a lot yatindr pande ji and ram shiromani pathak ji .
kya baat hai mam saty vachn
sundar rachana shalini g
thanks pradeep ji
saty kaha aapne
sundar gajal
saadr badhai
adarniyaa jii
aabhar jawahar ji meri abhivyakti ke marm par vichar karne ke liye .
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