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बाल मज़दूरी -हमारी मज़बूरी .

”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,
उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”
........................................................................
”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,
हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”
.......................................................................
”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,
दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”
...........................................................................
”होना चाहिए बस्ता किताबों,कापियों का जिनके हाथों में ,
ठेली खींचकर ले जा रहे वे बांधकर खुद को .”
.......................................................................
”सुनहरे ख्वाबों की खातिर ये आँखें देखें सबकी ओर ,
समर्थन ‘शालिनी ‘ का कर इन्हीं से जोड़ें अब खुद को .”
................................................................

मौलिक व् अप्रकाशित 

शालिनी कौशिक

[कौशल ]

Views: 354

Comment

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Comment by रमेश कुमार चौहान on June 18, 2014 at 10:01pm

इस अभिव्यक्ति से बाल श्रम पर आपने सार्थक  प्रकाश डाला है, सादर बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 17, 2014 at 9:11pm

”होना चाहिए बस्ता किताबों,कापियों का जिनके हाथों में ,
ठेली खींचकर ले जा रहे वे बांधकर खुद को .”

विडंबना ही है की सारी योजनाएं इन्हें ध्यान में रखकर बनाई जाती है नतीजा??????


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 17, 2014 at 9:11pm

बाल श्रम पर बहुत सुन्दर ,सार्थक अभिव्यक्ति शालिनी जी ,बधाई आपको |

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