बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .
पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.
मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह हमने हासिल की है .
जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी ,
मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
Comment
saurabh ji v veenas ji utsah vardhan hetu hardik dhanyawad
सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति विधात्मक भी हो तो मन को और संतुष्ट करती है.
बहुत खूब
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
यह रचना शिल्पगत गुणों से ग़ज़ल विधा के बेहद करीब है, कुछ मूलभूत बातों का ध्यान रखें तो यह ग़ज़ल हो जाये
शुभकामनाओं सहित
utsah vardhan hetu aap sabhi ka aabhar
न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .---बहुत सुन्दर भाव पूर्ण पंक्तियाँ खाली हाथ जाना है फिर भी इंसान अंत समय तक धन का लालच नहीं छोड़ता बढ़िया प्रस्तुति बधाई आपको शालिनी जी
पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .------ये तो डोर उपरवाले की बनाई हुई है इस डोरे से वह किसो किसके साथ बांधे वही जाने
नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
बहुत ही उम्दा कहा है, शालिनी जी |
रूहानी रिश्ते खुदा के रिश्ते होते हैं, जो सबको एक ही डोर से जोड़ देते हैं
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