For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

   

बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

 

न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है .

 

पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .

 

नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.

 

मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह  हमने हासिल की है .

 

जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी ,
मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है .
                       शालिनी कौशिक
                                 [कौशल ]

 

 

Views: 471

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shalini kaushik on November 27, 2012 at 11:51pm

saurabh ji v veenas ji utsah vardhan hetu hardik dhanyawad


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2012 at 8:25am

सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति विधात्मक भी हो तो मन को और संतुष्ट करती है.

Comment by वीनस केसरी on November 26, 2012 at 11:51pm

बहुत खूब
सुन्दर भावाभिव्यक्ति

यह रचना शिल्पगत गुणों से ग़ज़ल विधा के बेहद करीब है, कुछ मूलभूत बातों का ध्यान रखें तो यह ग़ज़ल हो जाये
शुभकामनाओं सहित

Comment by shalini kaushik on November 26, 2012 at 10:57pm

utsah vardhan hetu aap sabhi ka aabhar


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2012 at 8:34pm

न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है .---बहुत सुन्दर भाव पूर्ण पंक्तियाँ खाली  हाथ जाना है फिर भी इंसान अंत समय तक धन का लालच नहीं छोड़ता बढ़िया प्रस्तुति बधाई आपको शालिनी जी 

 

पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .

 

Comment by shikha kaushik on November 26, 2012 at 8:16pm
bahut bhavpoorn prastuti .aabhar
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 10:33am

पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .------ये तो डोर उपरवाले की बनाई हुई है इस डोरे से वह किसो किसके साथ बांधे वही जाने 

नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,  

खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं. ----इसीलिए तो कहते है रोना नहीं, हां आँखे साफ़ करनी हो तो बात अलग है या दिखावा 
आपकी रचना के भाव बेहद पसंद आये, काव्य में यथार्थता झलक रही है । इसके लिए हार्दिक बधाई । पर आपकी रचनाओं में महिला होने पर बेबसी जो झलकती है, उससे बाहर  निकले, और नारी के महत्त्व को  पहचान जितनी हिम्मत बटोर उत्साह से बढे,उतना अच्छा है ।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:52pm

रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .

बहुत ही उम्दा कहा है, शालिनी जी |

रूहानी रिश्ते खुदा के रिश्ते होते हैं, जो सबको एक ही डोर से जोड़ देते हैं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service